भारत में अवयस्कों द्वारा किए अनुबंधों के संबंध में निम्न सामान्य नियम हैं:

(1) एक अवयस्क के साथ या उसके द्वारा एक ठहराव प्रारंभ से अपरिचालित तथा व्यर्थ होता है: यदि एक ठहराव एक अवयस्क द्वारा या उसके साथ प्रवेशित किया गया है, तब ऐसा एक ठहराव प्रारंभ से व्यर्थ होता है तथा परिचालित नहीं होता। ऐसा एक ठहराव कुछ

अपवादों को छोड़कर कानूनों द्वारा प्रवर्तनीय नहीं किया जा सकता है।

(2) एक अवयस्क एक वचनग्रहीता तथा लाभग्रहीता हो सकता हालांकि एक अवयस्क द्वारा या उसके साथ प्रवेशित, एक ठहराव प्रारंभ से व्यर्थ होता है, तब भी कानून उसे एक वचनग्रहीता या भुगतानग्रहीता यालाभग्रहीता होने से वंचित नहीं करता। एक अवयस्क द्वारा या उसके साथ

प्रवेशित एक अनुबंध को उसके लाभ के लिए अवयस्क की इच्छा पर प्रवर्तनीय किया जा सकता है लेकिन अन्य पक्षकार की इच्छा पर नहीं।

उदाहरण: एक अवयस्क पी ने विक्रय के एक अनुबन्ध के

अन्तर्गत क्रेता को माल पूर्ति किया। अतः वह मूल्य की प्राप्ति के लिएएक मुकद्दमा जारी रखने का अधिकारी था।

(3) एक अवयस्क को व्युत्पन्न किसी लाभ के लिए क्षतिपूर्ति करने या भुगतान करने की जरूरत नहीं होती यदि एक अवयस्क ने किसी व्यर्थ ठहराव से कोई लाभ प्राप्त किया है, तब उसे अन्य पक्षकार को क्षतिपूर्ति करने या भुगतान करने के लिए नहीं कहा जा सकता।

उदाहरण: यदि एक अवयस्क ने किसी संपत्ति को बंधक रखकर कोई ऋण प्राप्त किया है तब न तो संपत्ति न अवयस्क ऋण का भुगतान करने के लिए दायित्वाधीन है।

(4) एक अवयस्क हमेशा अवयस्कता का सहारा ले सकता है: यदि एक अवयस्क ने उसकी आयु का मिथ्या व्यपदेशन करके, अन्य पक्षकार को उसके साथ एक अनुबंध में प्रवेशित करने के लिए प्रेरित किया है, तब अवयस्क पर कपट के लिए मुकदमा नहीं किया जा सकता। लेकिन जहाँ अवयस्क ने मिथ्या व्यपदेशन या कपटपूर्ण कार्य के

द्वारा कोई ऋण या संपत्ति प्राप्त की है, तब न्यायालय अवयस्क को ऋण या संपत्ति अन्य पक्षकार को लौटाने के लिए निर्देशित कर सकता है। कानून अवयस्क को दूसरों को धोखा देने की अनुमति नहीं देता।

(5) अवयस्क के साथ अनुबंध उसके द्वारा वयस्कता की

आयु पाने पर अनुसमर्थित नहीं किए जा सकते: एक अवयस्क उसके द्वारा प्रवेशित एक ठहराव को वयस्कता प्राप्त करने के बाद भी अनुसमर्थित नहीं कर सकता। वयस्कता प्राप्त करने के बाद अवयस्क एक नए अनुबंध

को कर सकता है, जिसके लिए पर्याप्त प्रतिफल होना चाहिए।

(6) एक अवयस्क द्वारा किए गए अनुबंध के विशिष्ट

की माँग नहीं की जा सकती: एक अवयस्क द्वारा या उसके

साथ किए एक ठहराव का कोई विशिष्ट निष्पादन नहीं हो सकता क्योंकि ठहराव प्रारंभ से ही व्यर्थ है। लेकिन यदि अवयस्क की ओर से उसके पालकों द्वारा, संरक्षक द्वारा या उसकी संपत्ति के प्रबंधक द्वारा एक ठहराव किया जाता है, तब ऐसा एक ठहराव प्रवर्तनीय किया जा सकता है,

बशर्ते कि ठहराव पालकों या संरक्षक या प्रबंधक के प्राधिकार के स्पष्ट क्षेत्र के भीतर आता है तथा ठहराव अवयस्क के लाभ के लिए है।

(7) एक अवयस्क को एक भागीदारी फर्म में सिर्फ लाभों के लिए प्रवेशित किया जा सकता है प्राय: एक अवयस्क को एक भागीदारी फर्म में प्रवेश नहीं दिया जा सकता। लेकिन एक अवयस्क को अन्य भागीदारों की सहमति के साथ पहले से उपस्थित भागीदरी में प्रवेश दिया जा सकता है। एक अवयस्क फर्म में हानियों के लिए दायित्वाधीन

नहीं होगा। एक अवयस्क अनुबन्ध करने हेतु अयोग्य होने के कारण एक साझेदारी फर्म में साझेदार नहीं हो सकता परन्तु भारतीय साझेदारी अधिनियम की धारा 30 के अन्तर्गत उसे उसके विधिपूर्ण संरक्षक के द्वारा निष्पादित 

एक ठहराव द्वारा सभी साझेदारों की सहमति से ‘साझेदारी के लाभों में हिस्सा दिया जा सकता है। 

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