चालू प्रतिभूति के सम्बन्ध में महत्त्वपूर्ण बिन्दु

चालू प्रतिभूति के सम्बन्ध में निम्न महत्त्वपूर्ण बिन्दुओं को याद रखना चाहिए-

(1) समय-समय पर विखण्डित प्रतिफल को लागू करना |

विभाजित योग्य प्रतिफल एक चालू प्रतिभूति बहुत से

विभिन्न या विशिष्ट व्यवहारों की श्रृंखला पर लागू होती है। अतः इसलिए |प्रतिफल विखण्डित तथा विभाजन योग्य होता है क्योंकि इसकी समय- समय पर पूर्ति की जाती है। अतः जब एक प्रतिभूति एक पूरे या पूर्ण प्रतिफल के लिए दी जाती है तो इसे एक चालू प्रतिभूति नहीं कहा जा

सकता।

(2) एक विशिष्ट प्रतिभूति चालू है या नहीं, यह पक्षकारों के

इरादे का प्रश्न होता है- पक्षकारों का इरादा प्रतिभूति की प्रकृति को तब करने का आधार होता है तथा ऐसा इरादा पक्षकारों द्वारा प्रयुक्त भाषा द्वारा । अभिव्यक्त होता है। अतः इसका सर्वश्रेष्ठ निर्धारण अनुबन्ध की शर्तों को

देखकर, अनुबन्ध निर्माण के समय पक्षकारों की सम्बन्धित स्थिति को देखकर तथा हर प्रकरण की उपस्थित परिस्थितियों को देखकर होता है।

(3) एक चालू प्रतिभूति एक पक्षकार को पूरे ॠण या एक

सीमा के अन्तर्गत पूरे ऋण के लिए दी जा सकती है- एक चालू प्रतिभूति पूरे ऋण के सिर्फ एक भाग के लिए दी जा सकती है।

(4) किश्तों में भुगतान किए जाने वाले एक ऋण की

प्रतिभूति एक चालू प्रतिभूति नहीं होती जब एक प्रतिभूति एक निश्चित समय के भीतर किश्तों द्वारा एक निश्चित रकम के भुगतान के लिए दी जाती है, तब यह एक चालू प्रतिभूति नहीं होती। यह असल में ऋण की प्रतिभूति होती है एवं इसलिए कुछ किश्तों के भुगतान के बाद रद्द नहीं की जा सकती।

चालू प्रतिभूति का रद्दीकरण

एक चालू प्रतिभूति को निम्न में से किसी भी तरीके से रह किया जा सकता है।

( 1 ) रद्दीकरण की सूचना द्वारा अनुबन्ध अधिनियम की धारा 130 कहती है कि एक चालू प्रतिभूति को प्रतिभू द्वारा भावी व्यवहारों के संदर्भ में ऋणदाता को इस प्रभाव की सूचना देकर किसी भी समय रद्द किया जा सकता है। अतः रद्दीकरण प्रतिभू को सूचना या रद्दीकरण के बाद किए किसी भी व्यवहार के लिए मुक्त कर देता है। हालांकि प्रतिभू उन पुराने व्यवहारों के लिए जिम्मेदार बना रहता है जो पहले ही किए जा चुके हैं।

(2) प्रतिभू की मृत्यु द्वारा धारा 131 के अनुसार, विपरीत

अनुबन्ध की अनुपस्थिति में प्रतिभू की मृत्यु जहाँ तक भावी व्यवहारों का प्रश्न है, एक चालू प्रतिभूति के रद्दीकरण का कार्य करती है। अतः प्रतिभूति प्रतिभू की मृत्यु पर अपने आप रद्द हो जाती है तथा यह जरूरी नहीं है कि मृत्यु की सूचना ऋणदाता को दी जाए। यह नोट किया जाना

चाहिए कि प्रतिभू की मृत्यु द्वारा रद्दीकरण सिर्फ भावी व्यवहारों के लिए प्रभावी होता है तथा प्रतिभू के विधिक उत्तराधिकारी उन व्यवहारों के लिए जिम्मेदार बने रहते हैं जो प्रतिभू की मृत्यु के पहले ही हो गए थे।

(3) विभिन्न परिस्थितियों में प्रतिभू की उन्मुक्ति द्वारा एक

चालू प्रतिभूति उन सभी परिस्थितियों के अन्तर्गत रद्द हो जाती है जिनके अन्तर्गत प्रतिभू उसके दायित्व से मुक्त हो जाता है जैसे-

1.नवीनीकरण द्वारा (धारा 62)

2.अनुबन्ध की शर्तों में विचलन द्वारा (धारा 133)

3.प्रमुख ऋणी की मुक्ति या उन्मुक्ति द्वारा (धारा 134) 

4.जब ऋणदाता प्रधान ऋणी द्वारा एक ठहराव में प्रवेश करता है। (धारा 135)

5.ऋणदाता का कार्य या विलोपन जो प्रतिभू के अंततः उपचार को impair करता है (धारा 139)

6.Security के खोने पर (धारा 141)

7.प्रतिभू के दायित्व की प्रकृति

तथा सीमा अनुबन्ध के अवैध होने पर (धारा 142, 143, 144)

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