पेटेंट एक्ट, 1970

सामान्य तौर पर पेटेंट का अर्थ है सरकार की तरफ से किसी आविष्कार को बनाने, बेचने व प्रयोग करने के लिए आज्ञा तथा अन्यों को भी ऐसा करने देने की स्वीकृति/पेटेंट अधिकार केवल उन नए आविष्कारों को ही प्रदान किये जाते हैं जिनका औद्योगिक उपयोग किया जा सकता है।

साधारण शब्दों में पेटेंट एकाधिकार अधिकार है जो कानून द्वारा ऐसे आविष्कार को प्रदान किया जाता है जो नया, उपयोगी तथा पूर्णतया प्रस्तुत किया गया हो। प्राधिकृत अधिकारियों द्वारा वर्णित सील किया गया प्रोफार्मा हस्ताक्षरित किया जाता है उसे ही पेटेंट कहते हैं। पेटेंट

सम्पत्ति है जिसे खरीदा, बेचा जा सकता है, इसे लाइसेंस पर भी लिया जा सकता है तथा किराए पर भी लिया जा सकता है।

भारत में आविष्कारों को पेटेंट देने की प्रक्रिया पेटेंट एक्ट 1970 द्वारा संचालित की जाती है। इस अधिनियम के अन्तर्गत स्वीकार किया गया पेटेंट पूरे भारत में लागू रहता है।

पेटेंट के उद्देश्य

पेटेंट का उद्देश्य है नए उद्योगों व तकनीकों को विकसित करना।

1.आविष्कार तथा नवीनताओं को प्रोत्साहित करता है।

2.आविष्कारकर्ता को सूचना गोपनीय रखने के स्थान पर खुल कर बताने के लिए प्रोत्साहित करता है।

पेटेंट की आवश्यकताएं

पेटेंट अधिनियम 1970 के अन्तर्गत पेटेंट के लिए निम्नलिखित आवश्यकताएं पूर्ण होनी चाहिए।

1.नयेपन की परीक्षा जिससे पता चले कि विषय नया है।

2.उपयोगिता की परीक्षा जिससे पता चले कि यह उपयोगी

3.यह ऐसी खोज होनी चाहिए जिसमें पता चले कि यह

जाते हैं-

4.विकास आविष्कारों के व्यय को पुरस्कृत करता है।

नई दिशाओं में पूँजी निवेश करने के लिए प्रोत्साहित करता है, जहाँ अधिक उपयोगी होने के कारण अधिक लाभदायक स्थितियाँ न हों।

4.यह औद्योगिक स्तर पर प्रयोग योग्य होनी चाहिए।

5.इसकी मार्केटिबिलिटी तथा वेंडेबिलिटी की परीक्षा होनी

हो सकता है चाहिए जिससे पता चल सके कि यह विषय वाणिज्यिक स्तर पर उपयोग

पेटेंट के प्रकार

इस अधिनियम के अन्तर्गत तीन प्रकार के पेटेंट प्रदान किए

1. साधारण पेटेंट-प्राय: यह पेटेंट प्राप्त किया जाता है। साधारण पेटेंट के लिए किसी भी व्यक्ति द्वारा जो चाहे भारत का नागरिक हो या न हो आवेदन दे सकता है, वह दावा कर सकता है कि वही सच्चा तथा उस आविष्कार का प्रथम आविष्कारकर्ता है या किसी मृत व्यक्ति का कानून

द्वारा प्रदत्त कानूनी प्रतिनिधि है जो अपनी मृत्यु के तुरंत पहले पेटेंट के लिए आवेदन करने के लिए योग्य था। यह आवेदन किसी भी व्यक्ति द्वारा अकेले ही तथा किसी अन्य व्यक्ति के साथ संयुक्त रूप से की जा सकती है। भारत में आविष्कार को सर्व प्रथम आयातित करने वाले अथवा भारत के बाहर से आविष्कार को सूचित करने वाले व्यक्ति को ही उसका सच्चा व प्रथम खोजकर्ता नहीं माना जा सकता। इस प्रकार विदेशी आविष्कार का पेटेंट इस अधिनियम के अन्तर्गत आवरित नहीं किया जा सकता।

यदि कोई व्यक्ति अपनी नौकरी करते हुए (जो कि किसी संविदा के अन्तर्गत है) कोई आविष्कार करता है तो वह आविष्कार उसके नियोक्ता का ही माना जाएगा। कोई कम्पनी या फर्म सच्चा व प्रथम आविष्कारक नहीं मानी जा सकती। ये केवल आविष्कार का प्रथम स्वामी

का दावा करने वाले व्यक्ति के असाइनी के रूप में पेटेंट के लिए आवेदन कर सकते हैं ‘व्यक्ति’ के अर्थ में सरकार भी शामिल है इसलिए सरकार असाइनी के रूप में पेटेंट के लिए आवेदन कर सकती है।

2. जोड़ने के लिए पेटेंट-जोड़ने के लिए किया जाने वाला पेटेंट किसी आविष्कार की उन्नति व संशोधन के लिए किया जाता है, जिस के लिए पेटेंट प्राय: सामान्यतया पहले से ही प्रदान किया जा चुका होता है। जोड़ने के लिए पेटेंट के लिए आवेदन मुख्य आविष्कार के बाद किया जा सकता है जिसके लिए आवेदन पहले ही किया जा चुका है। यह पेटेंट

तब तक प्रभावी रहता है जब तक कि मूल पेटेंट प्रभावी रहता है तथा इसके पुनरीक्षण के लिए कोई फीस नहीं ली जाती। यदि मूल पेटेंट को समाप्त किया जाता है तो जोड़ने के पेटेंट को स्वतंत्र पेटेंट के रूप में प्रदान किया जा सकता है। इसको समाप्त करने वाले अधिकारी द्वारा ही

जारी किया जा सकता है तथा यह मूल पेटेंट की अवधि समाप्त होने के पहले तक जारी रह सकता है। इसके लिए रिन्यूअल फीस जमा करनी होगी।

इसके लिए आवेदन मूल पेटेंट करने वाले व्यक्ति द्वारा ही किया जा सकता है, जिसके लिए कोई नया पक्ष जोड़ा जाना हो, यदि मूल पेटेंट के लिए आवेदन अभी भी लंबित पड़ा या मूल पेटेंट दिया गया हो तो उसके पंजीकृत स्वामी के द्वारा आवेदन किया गया हो।

3. परम्परा के लिए पेटेंट-पेटेंट अधिनियम के अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था प्रष्ट के अन्तर्गत पेटेंट भारत से बाहर रहने वाले व्यक्तियों को भी दिये जा सकते हैं। ऐसी ग्रांट तभी उपलब्ध होती है जहाँ ऐसी परम्परा, संधि या व्यवस्था हो कि विदेशी राष्ट्र भी बदले में पेटेंट जारी करेगा। सरकार को ऐसे राष्ट्रों की सूची अधिसूचना द्वारा गजट में प्रकाशित करनी पड़ती है। ऐसे पेटेंट के लिए पहले आवेदन ‘परम्परागत देश’ में करना पड़ता है। इसे मूल आवेदन कहा जाता है। इसके बाद इसे भारत में पेटेंट कार्यालय में प्रस्तुत किया जा सकता है।

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