सक्षम पक्षकार

सक्षम पक्षकार

भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 10 के अनुसार ‘सभी ठहराव अनुबंध होते हैं यदि वे अनुबंध करने के सक्षम पक्षकारों की स्वतंत्र सहमति द्वारा किए गए हैं। अतः धारा 10 इंगित करती है कि सिर्फ वे ठहराव अनुबंध हो सकते हैं जो अनुबंध करने में सक्षम पक्षकारों के बीच में प्रवेशित हुए हैं।

अधिनियम की धारा 1। बताती है कि ‘हर व्यक्ति अनुबंध

करने में सक्षम है।

i.जो उस अधिनियम के अनुसार वयस्कता की आयु का है,

जिसके वह विषयगत है।

2.स्वस्थ मस्तिष्क का है, तथा

3.वह किसी कानून द्वारा अनुबंध करने के लिए अयोग्य घोषित नहीं किया गया है, जिसके वह विषयगत है।

अतः एक अनुबंध कानून द्वारा प्रवर्तनीय होता है जब यह उनव्यक्तियों के बीच में प्रवेशित होता है जो वयस्क हैं, स्वस्थ मस्तिष्क के हैं तथा परिचालन में किसी कानून द्वारा अयोग्य घोषित नहीं किए गए हैं।

तीन दशाओं को निम्न तरह स्पष्ट किया जा सकता है :

(I) वयस्क व्यक्ति 

भारतीय वयस्कता अधिनियम, 1875 के अनुसार अवयस्कों को अप्रत्यक्ष रूप से निम्न तरह परिभाषित किया गया है भारत में निवासित कोई भी व्यक्ति वयस्कता की आयु प्राप्त कर लिया जाना जाएगा जब वह उसकी अठारह वर्ष की आयु को पूरा करता है, तथा इसके पहले नहीं।

लेकिन निम्न दशाओं में, एक अवयस्क 21 वर्षों की आयु पर वयस्कता प्राप्त करता है:

i.जहाँ एक अवयस्क के लिए या संपत्ति के लिए एक संरक्षक की नियुक्ति संरक्षक तथा वार्डस अधिनियम, 1890 के अंतर्गत की गई है, या

ii.जहाँ एक अवयस्क की संपत्ति वार्डस के न्यायालय के अधीक्षक के अंतर्गत है।

अवयस्क की अनुबंध करने की क्षमता : भारतीय संविदा

अधिनियम की धारा 11 के अनुसार, यह काफी स्पष्ट है कि एक अनुबंध सिर्फ एक वयस्क व्यक्ति द्वारा किया जा सकता है अतः एक अवयस्क एक अनुबंध करने के लिए सक्षम नहीं है। यदि कोई अनुबंध एक अवयस्क

के साथ किया जाता तब यह व्यर्थ होगा। अतः अवयस्क होना, हालांकि अनुबंध की असक्षमता का एक आधार हो सकता है, पर यह निश्चित ही उसके हितों के लिए संरक्षण का एक विषय है। नैतिक रूप से भी, यह कोई अच्छी चीज है क्योंकि कम उम्र के लोग किसी चीज को 

समझने की पर्याप्त क्षमता नहीं रखते।

अवयस्क के ठहराव

एक अवयस्क उसके द्वारा या उसके साथ प्रवेशित ठहरावों के संबंध में विचित्र स्थिति में होता है। कानून उसके द्वारा किए एक ठहराव के संबंध में एक अवयस्क के हितों का संरक्षण करता है। वास्तव में कानून एक अवयस्क की संरक्षा उसके स्वयं की गैर अनुभवहीनता तथा आयु

तथा अनुभव में उन्नत लोगों के अनुचित तथा खराब डिजाइनों के विरुद्ध करता है। यह सही अवलोकित किया गया है कि ‘कानून अवयस्क व्यक्तियों की संरक्षा करता है, उनके अधिकारों तथा संपत्तियों को संरक्षण देता है, उनकी गलतियों को माफ करता है, तथा उन्हें उनके अभिवचनों

में सहायता करता है, न्यायाधीश उनके सलाहकार हैं तथा ज्यूरीज उनके नौकर है तथा कानून उनका संरक्षक है। साथ ही एक अवयस्क हमेशा प्राप्त कर सकता है।

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