स्वस्थ मस्तिष्क वाले व्यक्ति

भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 11 के अनुसार, यह

है कि एक अनुबंध के पक्षकार स्वस्थ मस्तिष्क के होने चाहिए, अ अनुबंध को व्यर्थ माना जाएगा।

‘अस्वस्थ मस्तिष्क’ के लोगों का भारतीय संविदा अधि

की धारा 12 में अप्रत्यक्ष रूप से वर्णन किया गया है। इसके अनुसा व्यक्ति को एक अनुबंध को करने के लिए स्वस्थ मस्तिष्क का कहा है, यदि उस समय पर, जब वह उसे करता है, वह इसे समझने उसके हितों पर उसके प्रभाव के संबंध में एक तार्किक निर्णय लेने में

है। अतः एक व्यक्ति के मस्तिष्क की स्वस्थता उसकी अनुबंध को की क्षमता तथा उसके स्वयं के हितों पर इसके प्रभाव के बारे तार्किक निर्णय निर्मित करने की उसकी योग्यता पर निर्भर होती अस्वस्थ मस्तिष्क के लोगों को मोटे तौर पर निम्न तरह सकता है

(1) पागल या उन्मत्त व्यक्ति: कुछ व्यक्ति ऐसे होते हैं ज

अस्वस्थ मस्तिष्क के लेकिन कभी-कभी स्वस्थ मस्तिष्क के होते व्यक्ति कानूनी अनुबंध कर सकते हैं, जब वे स्वस्थ मस्तिष्क के लेकिन इस प्रकरण में, सिद्ध करने का भार ऐसे व्यक्ति पर होता है अनुबंध किया कि वह स्वस्थ मस्तिष्क का था तथा उसमें संविदायित्वों को समझने की क्षमता थी।

ऐसे लोगों को ‘पागल’ श्रेणी के अंतर्गत शामिल किया जाता है। वे उनके मानसिक संतुलन को किसी मानसिक दिक्कत या अन्य व्यक्तिगत कारणों से खो सकते हैं। यदि भारतीय उन्मत्तता अधिनियम के अंतर्गत, न्यायालय किसी को ‘पागल’ घोषित करता है तब न्यायालय के और

आदेशों के जारी होने तक, उनकी मानसिक बीमारी के दौरान किए गए। अनुबंध न्यायपूर्ण तथा वैध नहीं होंगे।

उदाहरण: एक व्यक्ति जो एक पागलखाने में है, तथा जो

अंतरालों में स्वस्थ मस्तिष्क का होता है, वह उन अंतरालों के दौरान अनुबंध कर सकता है। लेकिन अन्य पक्षकार के लिए यह स्थापित करना जरूरी है कि ऐसा व्यक्ति स्वस्थ मस्तिष्क की दशा में था, जब उसने उसके

(2) शराबी या मदोन्मत्त व्यक्ति एक व्यक्ति जो प्रायः स्वस्थ

मस्तिष्क का लेकिन कभी-कभी अस्वस्थ मस्तिष्क का होता है, वह उस समय एक कानूनपूर्ण अनुबंध को नहीं कर सकता जब वह अस्वस्थ मस्तिष्क का होता है। एक विवेकशील व्यक्ति जो बुखार या अन्य बीमारी

के कारण उन्माद की दशा में है या इतना ज्यादा नशे में है कि वह अनुबंध की तार्किकता या शर्तों तथा दशाओं को नहीं समझ सकता, वह अनुबंध नहीं कर सकता जब तक उन्माद या नशे की दशा जारी रहती है। इस प्रकरण में सिद्ध करने का भार ऐसे एक व्यक्ति पर निर्भर होता है कि

उन्माद या नशे की दशा के कारण वह अनुबंध की तार्किकता को समझने की स्थिति में नहीं था, यदि वह अनुबंध को अवैध ठहरवाना चाहता है।

(3) मूर्ख एक मूर्ख एक व्यक्ति है जिसने उसकी मानसिक शक्ति को पूरी तरह खो दिया है तथा उसके स्वयं के हित में अनुबंध के प्रभाव को समझने में काफी असक्षम है। एक मूर्ख के साथ एक ठहराव व्यर्थ होता है तथा कानून द्वारा प्रवर्तनीय नहीं होता। हालांकि अस्वस्थ मस्तिष्क के एक व्यक्ति के साथ या द्वारा एक ठहराव व्यर्थ होता है, लेकिन ऐसे व्यक्ति उन्हें या उनके अवयस्क आखितों को आपूर्तित अनिवार्यताओं के लिए दायित्वाधीन होते हैं। ऐसे प्रकरणों में भी सिर्फ अस्वस्थ मस्तिष्क वाले व्यक्तियों की संपत्ति दायित्वाधीन होती हैं व उन पर कोई व्यक्तिगत

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