स्वामित्व के हस्तान्तरण का अर्थ

माल के विक्रय के ठहरावों में प्रमुख चीज माल के स्वामित्व का हस्तान्तरण है। जब क्रेता माल का स्वामी बनता है सिर्फ तभी माल के स्वामित्व का हस्तान्तरण स्थापित हुआ माना जाता है।

स्वामित्व के हस्तान्तरण का महत्त्व

माल के विक्रय के अनुबन्धों में स्वामित्व का हस्तान्तरण निम्न कारकों से बहुत महत्त्वपूर्ण माना जाता है-

(1) स्वामित्व के साथ जोखिम का हस्तान्तरण व्यक्ति जो

माल के स्वामित्व को hold करता है वही इन मालों से सम्बन्धित जोखिमों को भी वहन करता है। अतः यह पता करना बहुत जरूरी है कि कब माल का स्वामित्व विक्रेता से क्रेता को जाता है।

(2) तृतीय पक्षकारों के विरुद्ध वाद दायर करने का अधिकार-यदि तृतीय पक्षकारों में से कुछ ने माल के विक्रय में कुछ हानि कारित की है या क्षति निर्मित की है, तब बगैर स्वामित्व के माल का स्वामी उन पर कोई वाद दायर नहीं कर सकता है।

(3) समापक द्वारा माल की प्राप्ति यदि क्रेता या विक्रेता

दिवालिया हो जाता है, तब आधिकारिक रिसीवर सिर्फ उस व्यक्ति से माल प्राप्त कर सकता है जिसके पास स्वामित्व का कब्जा है।

स्वामित्व के हस्तान्तरण के नियम

प्रायः विक्रेता से क्रेता को स्वामित्व का हस्तान्तरण उस समय प्रभावी होता है जब दोनों व्यवहार का निपटारा करते हैं। यदि दोनों पक्षकार किसी विशिष्ट समय को तय नहीं करते तब स्वामित्व का हस्तान्तरण तब माना जाता है जब वे हस्तान्तरण चाहते या इरादा करते हैं।

माल के स्वामित्व के हस्तान्तरण के दृष्टिकोण से उसे निम्न में बाँटा जा सकता है-

(1) निश्चित या विशिष्ट माल की स्थिति में स्वामित्व का

हस्तान्तरण- निश्चित या विशिष्ट माल में स्वामित्व का हस्तान्तरण तब प्रभावी होता है तब माल के विक्रय के ठहराव के दोनों पक्षकार उसे हस्तान्तरण करने का इरादा रखते हैं। इच्छा निम्न नियमों के आधार पर

निर्धारित की जाती है-

(i) जब माल सुपुर्दगी की स्थिति में है जब माल सुपुर्दगी

करने के लिए fit स्थिति में है तथा अनुबन्ध शर्तरहित है, तब विक्रेता से क्रेता को स्वामित्व का हस्तान्तरण तब होता है जब अनुबन्ध किया जाता है। यहाँ यह महत्त्वहीन है कि माल के मूल्य के भुगतान का समय या सुपुर्दगी का समय दोनों स्थगित किए गए हैं। यह जरूरी है कि अनुबन्ध

शर्तरहित होना चाहिए तथा माल सुपुर्दगी किया जाना संभव हो तथा विशिष्ट हो ।

(ii) जब माल को एक सुपुर्दगीय स्थिति में लाना होता है-

जब विक्रेता को माल को एक सुपुर्दगीय स्थिति में लाने के लिए कुछ करना होता है, तब स्वामित्व तब तक हस्तान्तरित नहीं होता जब तक कि इसे सुपुर्दगीय न माना जाए।

(iii) जब माल का मूल्य निश्चित करने के लिए इसका वजन

या मापन करना होता है- यदि कुछ विशिष्ट माल एक सुपुर्दगीय स्थिति में है, परन्तु इसका मूल्य निर्धारित करने के लिए विक्रेता को भार, माप, परीक्षण या कोई और कार्य करने की जरूरत होती है, तब स्वामित्व तब तक हस्तान्तरित नहीं माना जाएगा जब तक ऐसा कार्य निष्पादित नहीं हो सकती।

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