स्वीकृति का अर्थ

स्वीकृति का अर्थ

कोई भी ऑफर या प्रस्ताव इस इरादे से रखा जाता है कि

स्वीकृति उसके उद्देश्य या लक्ष्य के अनुसार प्राप्त की जा सके। ‘स्वीकृति ‘ प्रस्तावक तथा स्वीकारकर्ता के बीच में कानूनी संबंध स्थापित करती है। भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 2(b) के अनुसार ‘जब वह व्यक्ति जिसे प्रस्ताव किया गया है, उस पर उसकी स्वीकृति प्रदान करता है, तब प्रस्ताव स्वीकार किया हुआ कहा जाता है। स्वीकृति सिर्फ उस व्यक्ति द्वारा की जा सकती है जिसके सामने प्रस्ताव किया गया है। स्वीकृति के बाद प्रस्ताव ‘अनुबंध’ बन जाता है। व्यक्ति जो प्रस्ताव करता है को’प्रस्तावक’ के रूप में जाना जाता है तथा उसे स्वीकार करने वाले को ‘स्वीकारकर्त्ता’ के रूप में जाना जाता है।

दाहरण- अ ने ब को उसकी पुस्तक 200 रु. में बेचने का

स्वीकृति है।प्रस्ताव किया ब ने 200 रु. में पुस्तक को खरीदने की स्वीकृति दी। 

यह कौन स्वीकृत कर सकता है।

सिर्फ उस व्यक्ति द्वारा जिसे प्रस्ताव किया गया है या उसके

अधिकृत अभिकर्ता द्वारा स्वीकृति की जा सकती है। यदि यह एक विशिष्ट व्यक्ति को किया गया है तो सिर्फ उसके द्वारा स्वीकृत किया जा सकता है। यदि अ द्वारा व को प्रस्ताव किया गया है, तो स इसे स्वीकृत नहीं कर सकता। लेकिन यदि प्रस्ताव पूरी जनता को किया गया हो, कोई भी व्यक्ति इसे स्वीकार कर सकता है बशर्ते कि उसे प्रस्ताव की जानकारी हो।

स्वीकृति कैसे की जाती है

स्वीकृति स्पष्ट या गर्भित तरह से की जा सकती है। जब

स्वीकृति बोले या लिखित शब्दों द्वारा दी जाती है, इसे ‘स्पष्ट स्वीकृति’ कहा जाता है। दूसरी तरफ यदि स्वीकृति किसी कार्य के निष्पादन द्वारा दी जाती है तो इसे ‘गर्भित स्वीकृति’ कहा जाता है। जब एक व्यक्ति होटल में जाता है तथा कुछ खाना खाता है तो यह गर्भित है कि वह इसके लिए भुगतान करेगा।

स्वीकृति के संबंध मेंसंगत नियम

 स्वीकृति के संबंध में निम्न संगत नियम हो सकते हैं:

( 1 ) स्वीकृति को निश्चित ही संचारित किया जाना चाहिए।

: स्वीकृति को सिर्फ तब वैध समझा जाना चाहिए जब स्वीकृति संचारित हो गई है। सिर्फ सोचना कि ‘स्वीकृति’ को संचारित किया जाना चाहिए या स्वीकृति के लिए पत्र को लिखना तथा इसे डाकघर के पत्र बॉक्स में नहीं डालना, स्वीकृति नहीं होगा। अन्य शब्दों में, सिर्फ मानसिक स्वीकृति को स्वीकृति नहीं माना जाएगा जब तक इसे शब्दों या व्यवहार द्वारा स्पष्ट नहीं किया जाता।

(2) स्वीकृति पूर्णतः शर्तरहित होनी चाहिए : एक वैध

अनुबंध के लिए, यह जरूरी है कि स्वीकृति शर्तरहित होनी चाहिए तथास्वीकृति प्रस्ताव से संबंधित सभी मामलों के लिए दी गई है। भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 7 ( 1 ) के अनुसार, यह स्पष्ट है कि स्वीकृति पूर्णत: शर्तरहित होनी चाहिए। यदि स्वीकृति के दिए जाते समय कुछ शर्तें लगाई जाती हैं, तब यह स्वीकृति नहीं होगी, बल्कि पुराने प्रस्ताव के विरुद्ध यह एक प्रति या वैकल्पिक प्रस्ताव के प्रारूप में होगी जिसकी स्वीकृति मौलिक प्रस्ताव के प्रकाश में लेनी होगी। उदाहरण के लिए राम ने इस शर्त पर एक कुत्ता खरीदने का इरादा किया कि वह भौकेगा नहीं। श्याम ने भी इस प्रस्ताव को स्वीकार करने के बाद, एक और शर्त रख दी कि जब तक कोई कुत्ते को परेशान नहीं करता, यह नहीं भौकेगा । यहाँ श्याम ने प्रस्ताव को वैसे की वैसी दशा में स्वीकार न करके, इसमें कुछ संशोधन कर दिया, अतः यह स्वीकृति नहीं है।

(3) स्वीकृति उसी व्यक्ति द्वारा होनी चाहिए जिसे प्रस्ताव

किया गया है यदि कोई व्यक्ति एक अनुबंध को विशिष्टतः करना चाहता है, तब स्वीकृति भी उस विशिष्ट व्यक्ति द्वारा दी जानी चाहिए। अन्य व्यक्ति द्वारा स्वीकृति दिए जाने पर, अनुबंध प्रवर्तनीय नहीं होगा।

उदाहरण: इंदौर के वैष्णव महाविद्यालय ने विद्यार्थियों के लिए 100 बेचों के लिए एक आदेश मे. पाटनी एंड कंपनी को दिया। गलती से आदेश मे पटकनी एंड कंपनी द्वारा प्राप्त किया गया जिसने फर्नीचर कीपूर्ति के लिए आदेश पूरा किया। इस आधार पर वैष्णव महाविद्यालय फर्नीचर की सुपुर्दगी लेने से मरा कर सकता है, क्योंकि फर्म जिसे आदेश दिया गया था, ने स्वीकार नहीं किया था।

(4) स्वीकृति निश्चित अवधि के भीतर होनी चाहिए: प्रस्ताव

की शर्तों के अनुसार स्वीकृति को एक निश्चित या निर्दिष्ट अवधि के दौरान दिया जाना चाहिए। यदि प्रस्ताव में कोई निश्चित अवधि नहीं दी गई है, तब स्वीकृति को एक उचित अवधि के भीतर दिया जाना चाहिए। क्या ‘उचित अवधि’ होगी को विशिष्ट प्रकरण की दशाओं के अनुसार तय या निर्धारित किया जाएगा।

(5) स्वीकृति व्यवहार द्वारा भी दी जा सकती है बहुत बार,

स्वीकारकर्त्ता स्वीकृति की सूचना नहीं देता, बल्कि इसे उसके व्यवहार द्वारा व्यक्त या इंगित करता है। यह स्वीकृति वैध मानी जाएगी।

उदाहरण : बी कॉम का एक विद्यार्थी, मुकेश इंदौर बुक सेंटर से 50 रु. के लिए व्यावसायिक सन्नियम की एक प्रश्न-उत्तर पुस्तक खरीदने का प्रस्ताव करता है। इंदौर बुक सेंटर स्वीकृति को संचारित नहीं करते हुए, व्यावसायिक सन्नियम पर एक पुस्तक भेजता है। मुकेश का प्रस्ताव इंदौर बुक सेंटर द्वारा उसके व्यवहार द्वारा स्वीकार किया हुआ माना

जाएगा।

(6) विखंडित प्रस्ताव को पुनः स्वीकृति नहीं दी जा सकती

: प्रस्ताव को विखंडित करने के बाद, इसे पुनः स्वीकार नहीं किया जा सकता। प्रस्ताव इसके बाद विखंडित किए जाने पर खत्म हो जाता है। अतः पुनर्वीकृति के लिए यह जरूरी है कि प्रस्ताव फिर से किया जाए।

(7) प्रस्ताव के बारे में स्वीकारकर्त्ता का ज्ञान जरूरी है : यदि प्रस्ताव के बारे में किसी व्यक्ति को कोई जानकारी नहीं है, लेकिन इसमें समाहित प्रस्ताव की भावना के अनुसार कार्य करता है, तब इसे स्वीकृति

नहीं माना जाएगा क्योंकि एक वैध अनुबंध के लिए यह जरूरी है कि स्वीकारकर्त्ता को प्रस्ताव की जानकारी होनी चाहिए।

( 8 ) स्वीकृति प्रस्ताव की शर्तों के क्रियान्वयन द्वारा होनी

चाहिए : यदि किसी को प्रस्ताव की जानकारी है तथा वह उसके अनुसार प्रस्ताव की शर्तों का पालन करता है, तब यह प्रस्ताव की स्वीकृति होगी। उदाहरण के लिए यदि किसी खोई चीज को ढूँढ़ने के लिए किसी

पुरस्कार की घोषणा की गई है, तब उस चीज को ढूँढ़ने का कार्य स्वयं प्रस्ताव की स्वीकृति होगा।

(9) स्वीकृति स्पष्ट तथा गर्भित दोनों हो सकती है जब

स्वीकृति को लिखित या मौखिक शब्दों में व्यक्त किया जाता है, तब यह एक स्पष्ट स्वीकृति होगी। इसके विपरीत यदि कंडक्ट या व्यवहार द्वारा किसी स्वीकृति को इंगित किया जाता है, तब यह गर्भित स्वीकृति होगी।

(10) स्वीकृति प्रस्ताव के संप्रेषण के बाद दी जानी चाहिए-

स्वीकृत किए जाने के पहले प्रस्ताव को संप्रेषित किया जाना चाहिए। यह एक सामान्य नियम है कि कोई भी व्यक्ति वह स्वीकार नहीं कर सकता जो उसे संप्रेषित नहीं किया गया हो। बगैर प्रस्ताव की स्वीकृति एक वैध

स्वीकृति नहीं होती।

(11) मौन स्वीकृति का तरीका नहीं हो सकता स्वीकारक का मौन स्वीकृति नहीं माना जा सकता। उदाहरण के लिए ‘अ’ ने ‘ब’ को उसकी कार 10,000 रु. में बेचने का प्रस्ताव किया तथा कहा कि यदि तुम जवाब नहीं दोगे तो मैं यह मान लूँगा कि तुमने मेरा प्रस्ताव स्वीकार कर लिया है। यदि ब जवाब नहीं भी देता, तब भी अनुबन्ध नहीं हो सकता।

(12) प्रस्ताव का अन्त होने या वापस लेने के पूर्व स्वीकृति

दी जानी चाहिए – यह बहुत महत्त्वपूर्ण है कि प्रस्ताव को इसका अंत होने या प्रस्ताव देने वाले पक्षकार द्वारा वापस लेने के पहले स्वीकार किया जाना चाहिए। प्रस्ताव के खत्म होने या वापस लेने के बाद इसे स्वीकार

नहीं किया जा सकता क्योंकि स्वीकार करने के लिए कोई चीज नहीं है।

यह नोट किया जाना चाहिए कि एक बार जब प्रस्ताव का अन्तहो जाता है तो यह हमेशा के लिए खत्म हो जाता है जब तक कि इसे प्रस्तावक द्वारा पुनर्जीवित न कर दिया जाए।

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