हानिरक्षा या क्षतिपूर्ति का अनुबन्ध
‘क्षतिपूर्ति का अनुबन्ध एक ऐसा अनुबन्ध है जिसके द्वारा एक पक्षकार दूसरे को स्वयं वचनदाता के व्यवहार या किसी भी अन्य व्यक्ति के व्यवहार द्वारा उसे होने वाली हानि से दूसरे को बचाने का वचन देता है’ (धारा 124)। व्यक्ति जो हानि की पूर्ति करने का वचन देता है उसे
‘हानिरक्षक’ कहते हैं तथा व्यक्ति जिसे ऐसा वचन दिया जाता है अर्थात् जिसकी हानि की पूर्ति की जानी है उसे ‘हानिग्रहीता’ या ‘हानि रक्षाघारी कहा जाता है।
उदाहरण- दो मित्र अ तथा ब एक दुकान में गए। अ ने दुकानदार से कहा ‘ब को माल लेने दो, मैं तुम्हें भुगतान करूँगा। यह क्षतिपूर्ति का एक अनुबन्ध है।
यह नोट करना महत्त्वपूर्ण है कि धारा 124 में दी गई परिभाषा बहुत संकुचित है। इसमें सिर्फ निम्न शामिल हैं-
1.क्षतिपूर्ति के स्पष्ट वचन तथा
2.वचनदाता या अन्य किसी व्यक्ति द्वारा कारित हानि।
इसमें निम्न शामिल नहीं हैं-
1.क्षतिपूर्ति करने के सांकेतिक वचन
2.दुर्घटनाओं तथा घटनाओं द्वारा कारित हानि जो वचनदाता या किसी अन्य व्यक्ति के व्यवहार पर निर्भर नहीं होती है।
प्रमुख तत्त्व
हम कह सकते हैं कि क्षतिपूर्ति के एक अनुबन्ध के प्रमुख तत्त्व इस प्रकार है-
( 1 ) क्षतिपूर्ति का एक अनुबन्ध स्पष्ट या गर्भित हो सकता
है- जब एक व्यक्ति दूसरे को नुकसान से क्षतिपूर्ति देने का स्पष्ट वचन देता है, इसे स्पष्ट क्षतिपूर्ति कहा जाता है। क्षतिपूर्ति का अनुबन्ध तब गर्भित कहा जाता है जब इसे पक्षकारों के व्यवहार या प्रकरण की परिस्थितियों से निष्कर्षित किया जाता है।
(2) वचनदाता या अन्य किसी व्यक्ति के अलावा, हानि किसी घटना, दुर्घटना या किसी प्राकृतिक परिदृश्य या विनाश के कारण के कारण कारित हो सकती है क्षतिपूर्ति के एक अनुबन्ध में किसी भी कारण से कारित हानि की पूर्ति का वचन शामिल होता है जैसे आग, समुद्र के संकट, दुर्घटनाएं, चोरी आदि। क्षतिपूर्ति की इस विस्तृत अवधारणा
क्षतिपूर्ति के अनुबन्ध भी होते हैं को ध्यान में रखते हुए बीमा के सभी अनुबन्ध (जीवन बीमा को छोड़कर)
(3) एक अनुबन्ध होने के कारण, इसमें एक वैध अनुबन्ध के सभी अनिवार्य लक्षण होने चाहिए।
हानिरक्षाधारी के अधिकार
हानि से क्षतिपूर्ति के अनुबन्ध में एक पक्षकार दूसरे को उसे बचाने का वचन देता है। जो व्यक्ति हानि की पूर्ति करने का वचन देता है।
उसे ‘हानिरक्षक’ तथा जिस व्यक्ति की हानि की पूर्ति की जाती है उसे ‘हानिरक्षाधारी’ कहा जाता है।
यदि ऐसा हानिरक्षाघारी किसी हानि को सहन करता है तो उसे हानिरक्षक के विरुद्ध निम्न अधिकार प्राप्त होते हैं-
1.उसे उन सभी क्षतियों की पुनर्प्राप्ति का अधिकार है जो उसे भुगतान करनी होती हैं।
2.वह उन सभी लागतों की पुनर्प्राप्ति कर सकता है जो उसके द्वारा ऐसे वादों को लाने या रक्षा करने में उसके द्वारा उचित रूप से व्यय की गई है।
3.वह उन सभी रकमों की भी पुनर्प्राप्ति का अधिकारी है जो उसने किसी ऐसे समझौते की शर्तों के अन्तर्गत भुगतान की होंगी जो विवेकपूर्ण तरह से किए गए है तथा वचनदाता द्वारा अधिकृत किए गए हैं।
संक्षेप में हानिरक्षाधारी, हानिरक्षक से वे सभी क्षतियों, वादों की सभी लागतें तथा समझौता रकम पुनर्प्राप्त कर सकता है। जो हानिरक्षक द्वारा स्वीकृत तथा विवेकपूर्ण तरह से खर्च की गई है।
यह नोट किया जाना चाहिए कि क्षतिपूर्ति का अनुबन्ध एक
सामान्य अनुबन्ध का प्रकार है तथा इसलिए इसे एक वैध अनुबन्ध के सभी अनिवार्य लक्षणों को संतुष्ट करना चाहिए जैसे स्वतन्त्र सहमति, पक्षकारों की क्षमता, विधिपूर्ण उद्देश्य आदि। अतः यदि क्षतिपूर्ति के एक अनुबन्ध का उद्देश्य अवैध है, तब यह व्यर्थ होगा।
उदाहरण- अ, ब को स को पीटने को कहता है तथा ब को
परिणामों के विरुद्ध क्षतिपूर्ण करने का वचन देता है। ब स को पीटता है तथा इसके परिणामस्वरूप 100 रु. का जुर्माना देता है। ब इस रकम की अ से पुनर्प्राप्ति नहीं कर सकता क्योंकि इस ठहराव का उद्देश्य अवैध है।