एक अनुबन्ध विधि के न्यायालय में प्रवर्तनीय दायित्वों का
निर्माण करता है। अतः यदि एक पक्षकार उसके हिस्से का निष्पादन करने में असफल रहता है, तब अन्य पक्षकार को अनुबन्ध का प्रवर्तन करवाने न्ययालय जाने का अधिकार होता है। एक उपचार कानून द्वारा अधिकार को प्रवर्तनीय करने हेतु दिए गए माध्यम है।
जब एक अनुबन्ध को तोड़ा जाता है, तब पीड़ित पक्षकार
मर्थात् पक्षकार जिसने भंग नहीं किया है) को निम्न उपचारों में से एक ज्यादा प्राप्त होते है।
(1) अनुबन्ध का विखण्डन- जब एक पक्षकार द्वारा अनुबन्ध भंग केया जाता है, अन्य पक्षकार अनुबन्ध का विखण्डन कर सकता है। उसे अनुबन्ध के अन्तर्गत दायित्वों के उसके भाग का निष्पादन करने की जरूरत नहीं होती। वह घर पर शांति से बैठ सकता है यदि वह पीड़ित पक्षकार के विरुद्ध कोई कानूनी कार्यवाही नहीं करने का निश्चय करता है। जब पीड़ित पक्षकार, दोषी पक्षकार पर दावा करना चाहता है, वह अनुबन्ध के विखण्डन हेतु एक मुकद्दमा दायर कर सकता है। ऐसी स्थिति में वह अनुबन्ध के अन्तर्गत उसके सभी दायित्वों से मुक्त (स्वतन्त्र) हो जाता है।
उदाहरण- अ ने ब को 15 अप्रैल को 8000 रु. के लिए चाय पत्तियाँ पूर्ति करने का अनुबन्ध किया। यदि अ निर्धारित दिन चाय पत्तियों की पूर्ति नहीं करता, ब को मूल्य का भुगतान करने की जरूरत नहीं है। ब अनुबन्ध को विखण्डित मान सकता है तथा घर पर आराम से बैठ सकता है। व ‘विखण्डन हेतु दावा’ भी कर सकता है व हर्जाने की माँग कर सकता है।
अनुबन्ध का विखण्डन करना
हर्जाने के लिए वाद उचित पारिश्रमिक हेतु वाद अनुबन्ध के विशिष्ट निष्पादन हेतु वाद निषेधाज्ञा हेतु वाद
निम्न स्थितियों में विखण्डन का अधिकार ख़त्म हो जाता है-
1.जहाँ अनुबन्ध प्रकट या सांकेतिक तरीके से उस पक्षकार द्वारा पुष्टीकृत किया गया है जो अनुबन्ध विखण्डित करने हेतु अधिकार रखता है। अन्य शब्दों में पक्षकार उसके विखण्डित करने के अधिकार का त्याग करता है।
2.जहाँ अनुबन्ध बाँटा नहीं जा सकता तथा पक्षकार अनुबन्ध के सिर्फ एक भाग का विखण्डन करना चाहता है।
3.जहाँ पक्षकारों को उसी स्थिति में नहीं रखा जा सकता जहाँ वे भंग होने के पहले थे। यह तब हो सकता है जब पक्षकार द्वारा विषय-वस्तु नष्ट या उपभोक्त कर ली गई है।
4.जहाँ इस बीच में, तीसरे पक्षों ने सद्भावना में तथा मूल्य के लिए हित प्राप्त कर लिए हैं।
यदि एक पक्षकार अनुबन्ध को विखण्डित करता है तब वह
अनुबन्ध के अन्तर्गत प्राप्त किसी लाभ को बहाल करने हेतु दायित्वाधीन है। लेकिन उसे किसी क्षति हेतु क्षतिपूर्ति प्राप्त करने का अधिकार होता है। जो उसने अन्य पक्षकार द्वारा अनुबन्ध को पूरा न करने के द्वारा वहन किया है।
(2) हर्जाने हेतु दावा : हर्जाना एक अनुबन्ध के लिए उसके द्वारा वहन नुकसान या क्षति के लिए न्यायालय द्वारा घायल व्यक्ति को दी गई मौद्रिक क्षतिपूर्ति है। हर्जाने का मूलभूत सिद्धान्त दण्ड नहीं वरन् क्षतिपूर्ति है। सामान्य नियम के रूप में क्षतिपूर्ति वहन किए गए क्षति या नुकसान के अनुपात में होना चाहिए।
अतः एक पक्षकार जो अनुबन्ध के क्षेत्र के कारण सहन करता है,व्ह अधिकारी है-
*ऐसे हजनि का जो ऐसे भंग से चीजों के सामान्य रास्ते से स्वाभाविक तौर से उत्पन्न हुए हैं।