अनुबन्ध की समाप्ति का अर्थ पक्षकारों के बीच में अनुबन्धीय सम्बन्धों की समाप्ति है। जब पक्षकारों के अधिकारों तथा दायित्वों का अन्त हो जाता है, तब कहा जाता है कि अनुबन्ध की समाप्ति हो गई है।

एक अनुबन्ध की समाप्ति हो सकती है-

1..निष्पादन द्वारा

2.सहमति या स्वीकृति द्वारा

3.असभवता द्वारा समय व्यतीत हो जाने पर

4.राजनियम के लागू होने पर

4. अनुबन्ध भग द्वारा इनका संक्षिप्त वर्णन इस तरह है-

(1) निष्पादन तथा समाप्ति : जब अनुबन्ध दोनों पक्षकारों द्वारा निष्पादित हो जाता है तथा करने के लिए कुछ बाकी नहीं बचता तब इसे निष्पादन द्वारा समाप्ति कहा जाता है। ऐसी स्थिति में दोनों पक्षकार मुक्त हो जाते हैं तथा अनुबन्ध समाप्त हो जाता है। लेकिन यदि सिर्फ एक पक्षकार वचन का निष्पादन करता है, वह अकेला मुक्त होता है।

(अ) वास्तविक निष्पादन 

(ब) निष्पादन का प्रयास करना

अनुबन्ध का निष्पादन समाप्ति का सामान्य तरीका है। 

(अ) वास्तविक निष्पादन- जब अनुबन्ध का हर पक्षकार निर्माण दायित्व को पूरा कर देता है, यह अनुबन्ध का वास्तविक निष्पादन समय के अन्तर्गत तथा तरीके से अनुबन्ध के अन्तर्गत उत्पन्न है तथा अनुबन्ध की समाप्ति हो जाती है या यह खत्म हो जाता है।

(ब) निष्पादन का प्रयास करना या निविदा- जब वचनदाता

करता है पर ऐसा नहीं कर पाता क्योंकि वचनग्रहीता निष्पादन का अनुबन्ध के अन्तर्गत उसके दायित्व को निष्पादित करने का प्रस्ताव स्वीकार नहीं करता, तो इसे निष्पादन का प्रयास करना या निविद कहा जाता है।

(2) पारस्परिक सहमति या ठहराव से समाप्ति क्योंकि एक

अनुबन्ध का निर्माण ठहराव से होता है, अतः इसकी समाप्ति भी समान पक्षकारों द्वारा अन्य ठहराव से हो सकती है। नियम यह है कि ‘एक चीज उसी तरीके से नष्ट की जा सकती है, जिसमें वह निर्मित की गई थी।

पारस्परिक ठहराव द्वारा एक अनुबन्ध की समाप्ति की विभिन्न स्थितियाँ नीचे दिए अनुसार है-

(i) नवीनीकरण- जब एक नए अनुबन्ध को वर्तमान अनुबन्ध की जगह प्रतिस्थापित किया जाता है, तब इसे नवीनीकरण कहा जाता है। जब नए अनुबन्ध को ‘नवीनीकरण’ द्वारा स्वीकृति दी जाती है, तब

मौलिक अनुबन्ध की समाप्ति हो जाती है तथा उसके निष्पादन की जरूरत नहीं रहती।

उदाहरण- अ को एक अनुबन्ध के अन्तर्गत ब को 1000 रु. देने हैं। ब को स को 1000 रुपये देने हैं। ब, अ को उसकी किताबों में से को 1000 रु से क्रेडिट करने का आदेश देता है परन्तु C ठहराव के लिए राजी नहीं होता। ब को अभी भी स को 1000 रु. देने हैं तथा कोई नया अनुबन्ध

नहीं हुआ है।

(ii) परिवर्तन परिवर्तन का अर्थ अनुबन्ध की एक या ज्यादा

शर्तों में परिवर्तन है। यदि पारस्परिक सहमति से अनुबन्ध में एक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन होता है, तब मौलिक अनुबन्ध की समाप्ति हो जाती है तथा एक नया अनुबन्ध नए प्रारूप में उसका स्थान लेता है। यह नोट करना महत्त्वपूर्ण है कि महत्त्वपूर्ण परिवर्तन सभी पक्षकारों की पारस्परिक सहमति

से किया जाना चाहिए, नहीं तो यह पूरे अनुबन्ध को व्यर्थ बना देगा।

(iii) छुटकारा- निष्पादन की तारीख से पहले पक्षकारों के बीच में को छुटकारे के रूप में जाना जाता है।

ठहराव के द्वारा एक अनुबन्ध की समाप्ति हो सकती है। ऐसे एक ठहराव उदाहरण- अ, ब को एक निश्चित तिथि को कुछ माल सुपुर्दगी करने का वचन देता है। निष्पादन की दिनांक से पहले, अ तथा ब आपक्ष में तय करते हैं कि अनुबन्ध छुटकारे द्वारा समाप्त माना जाएगा।

(iv) क्षमा या छूट- क्षमा या छूट का अर्थ अनुबन्धित से कम

रकम की स्वीकृति या वचन की कम पूर्ति है।

उदाहरण- अ को ब को 5000 रु. देना है। अ

ब को 2000 में भुगतान करता है तथा व जिस समय तथा स्थान पर 5000 रु. देव थे। उस पर कुल ऋण की सन्तुष्टि में 2000 रु. स्वीकार करता है। पूरा ऋण समाप्त हो गया है।

(v) त्याग- त्याग तब होता है जब एक अनुबन्ध के पक्षकार

करते हैं कि वे अब अनुबन्ध द्वारा बाध्य नहीं रहेंगे। इसका अर्थ अनुबन्ध के पक्षकारों द्वारा अधिकारों का पारस्परिक परित्याग होगा। त्याग के लिए प्रतिफल की जरूरत नहीं होती।

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