परिस्थितियां जिनके अन्तर्गत अनुबन्धों के निष्पादन की जरूरत नहीं होती, निम्न हैं-

1.यदि एक अनुबन्ध के पक्षकार नवीकरण या परिवर्तन के

लिए सहमत होते हैं, तब मौलिक अनुबन्ध के निष्पादन की जरूरत नहीं। होती है। ऐसी स्थिति में मौलिक अनुबन्ध एक नए अनुबन्ध द्वारा प्रतिस्थापित हो जाता है।

2.यदि एक अनुबन्ध के पक्षकार अनुबन्ध के निष्पादन को

पूरा या आंशिक रूप से छोड़ने या remit करने पर सहमत होते हैं, तब मौलिक अनुबन्ध खत्म हो जाता है। इसे तकनीकी तौर पर निरस्तीकरण कहा जाता है।

3. जब एक व्यक्ति जिसकी इच्छा पर एक अनुबन्ध व्यर्थनीय है, इसे परित्याग करता है, तब अन्य पक्षकार को उसके वचन का निष्पादन करने की जरूरत नहीं होती है।

यदि कोई वचनग्रहीता, वचनदाता को उसके वचन

निष्पादन हेतु पर्याप्त सुविधाएं देने में असावधानी करता है या मना करता है तब वचनदाता को अनुबन्ध के गैर-निष्पादन हेतु छूट दी जाती है।

संयुक्त वचनों का निष्पादन

जब एक अनुबन्ध में एक से ज्यादा वचनदाता या वचनग्रहीता होते हैं, तब इसे संयुक्त वचन के रूप में जाना जाता है।

संयुक्त वचन निम्न में कोई एक रूप ले सकते हैं-

1.जहाँ बहुत से संयुक्त वचनदाता एक अकेले वचनग्रहीता

को एक वचन देते हैं जैसे अ, ब तथा स संयुक्त रूप से द को 3,000 रु. देने का वचन देते हैं; अथवा

2.जहाँ एक अकेला वचनदाता बहुत से संयुक्त वचनग्रहीताओं रु. देने का वचन देता है।

को एक वचन देता है। जैसे पी, क्यू तथा आर को संयुक्त रूप से 3,000 देने का वचन करता है।

जहाँ कई संयुक्त वचनदाता बहुत से संयुक्त वचनग्रहीताओं

को एक वचन देते हैं जैसे अ, ब, स संयुक्त रूप से पी, क्यू तथा आर को संयुक्त रूप से 3,000 रुपये देने का वचन देते हैं।

जब संयुक्त वचनग्रहीताओं में से किसी की मृत्यु हो जाती निष्पादन का दावा करने का अधिकार उसके विधिक प्रतिनिधि के पास संयुक्त वचनों के निष्पादन की माँग कौन कर सकता है? धारा 45 प्रावधान करती है कि जब एक वचन कई व्यक्तियों को संयुक्त रूप से दिया जाता है, तब निष्पादन का दावा करने का अधिकार सभी वचनमहीताओं के पास संयुक्त रूप से होता है तथा एक अकेला वचनग्रहीता कर सकता है।निष्पादन की माँग नहीं कर सकता।

निष्पादन का समय तथा स्थान

अनुबन्ध का निष्पादन किस समय पर तथा किस स्थान पर किया जाना चाहता, यह एक ऐसा विषय है जिसका निर्धारण स्वयं वचनदाता तथा वचनग्रहीता द्वारा किया जाना चाहिए। एक के निष्पादन के

समय तथा स्थान से सम्बन्धित नियमों को निम्न तरह संक्षेप में बताया जा सकता है

(1) जब वचनग्रहीता द्वारा निर्धारित हों- जब समय तथा स्थान वचनग्रहीता द्वारा निर्धारित किए गए हों, वहाँ 

अनुबन्ध का निष्पादन निर्दिष्ट समय तथा स्थान पर होना चाहिए।

(2) जब वचनग्रहीता द्वारा निर्धारित नहीं हों- यदि वचनग्रहीता द्वारा कोई समय तथा स्थान निर्धारित नहीं किया गया है तब अनुबन्ध का निष्पादन होना चाहिए।

(अ) उचित समय के अन्तर्गत यदि निष्पादन के लिए कोई

समय तथा स्थान निर्धारित नहीं हैं, तब इसका निष्पादन एक कार्यकारी दिवस पर उचित समय के अन्तर्गत होना चाहिए

ब.’उचित समय क्या है’ यह प्रश्न हर विशिष्ट प्रकरण में तथ्य का प्रश्न होता है। यह हर प्रकरण की विशेष परिस्थितियों तथा अनुबन्ध के पक्षकारों के इरादे पर निर्भर होता है।

उदाहरण- अ ने ब के गोदाम पर पहली जनवरी को माल की। सुपुर्दगी देने का वचन दिया। उस दिन अ माल को ब के गोदाम पर लाता है लेकिन बन्द होने के सामान्य घंटे के बाद तथा उन्हें प्राप्त नहीं किया जाता है। अ ने उसके वचन का निष्पादन नहीं किया है।

(ब) उचित स्थान पर ‘उचित स्थान क्या है यह हर विशिष्ट

प्रकरण में तथ्य का प्रश्न होता है। सामान्य तौर पर वचनदाता को वचनग्रहीता से पूछना चाहिए कि वह अनुबन्ध का निष्पादन कहाँ करवाना चाहेगा तथा इसे ऐसे स्थान पर निष्पादित करना चाहिए।

उदाहरण- अ ने एक तय दिन पर ब को जूट के एक हजार बोरे देने का वचन दिया। अ को ब से इसे प्राप्त करने के उद्देश्य के लिए एक उचित स्थान तय करने हेतु आवेदन करना चाहिए तथा उसे ऐसे स्थान पर सुपुर्दगी देनी चाहिए।

(स) वचनग्रहीता द्वारा निर्धारित या स्वीकृत तरीके में या

समय पर निष्पादन किसी भी वचन का निष्पादन वचनग्रहीता द्वारा निर्धारित या स्वीकृत किसी तरीके में या किसी भी समय पर किया जा सकता है। (धारा 50)

उदाहरण- अ को ब को 2000 रु. देने हैं। ब ऋण को कम करने हेतु अ का कुछ माल स्वीकार कर लेता है। माल की सुपुर्दगी एक आंशिक भुगतान का कार्य करती है।

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