गलती को किसी चीज के बारे में त्रुटिपूर्ण विश्वास के रूप में

वर्णित किया जा सकता है। एक अनुबंध गलती द्वारा कारित किया जा सकता है जब अनुबंध के दोनों पक्षकार समान चीज पर तथा समान भाव में सहमत नहीं होते हैं। गलतियाँ निम्न प्रकारों की हो सकती हैं।

1.तथ्य की गलती

2.कानून की गलती

3.दोनों पक्षकारों की गलती।

(1) तथ्य की गलती

जब कोई गलती किसी महत्त्वपूर्ण तथ्य से संबंधित होती है तथा गलती एक पक्षकार तक सीमित नहीं होती बल्कि दोनों पक्षकारों से संबंधित होती है, तब इसे तथ्य की गलती के रूप में जाना जाता है।

उदाहरण के लिए महेश, नरेश के लिए वस्तुओं को शिपमेंट को देने के लिए एक अनुबंध करता है जिसके अमेरिका से आने की आशा है। लेकिन आने के पहले, जहाज पहले ही समुद्र में डूब गया था, जिसकी सूचना पक्षकारों में से किसी को नहीं थी। यह अनुबंध, दोनों पक्षकारों की

गलती के कारण व्यर्थ है। तथ्य की गलती को निम्न तरह और वर्गीकृत किया जा सकता है।

(अ) द्विपक्षीय गलती: भारतीय अनुबंध अधिनियम की धारा 20 के अनुसार ‘जब एक ठहराव के दोनों पक्षकार, ठहराव के लिए जरूरी तथ्य के मामले में गलती पर होते हैं, तब ठहराव व्यर्थ होता है। अतः अधिनियम बताता है कि गलती द्विपक्षीय होनी चाहिए तथा ठहराव के

लिए जरूरी तथ्य से संबंधित होना चाहिए।

उदाहरण: A, 1000 रु. की रकम के लिए B को उसका घोड़ा बेचने पर सहमत होता है। लेकिन घोड़ा एक दिन पहले मर गया जिसके बारे में न तो Aन B को कोई जानकारी थी। यह ठहराव द्विपक्षीय गलती

पर आधारित है तथा व्यर्थ है।

इस धारा के अन्तर्गत ठहराव को प्रारम्भ से ही शून्य घोषित करने के लिए, निम्न दो शर्तों को पूरा किया जाना चाहिए- 

(i) दोनों पक्षकारों को गलती पर होना चाहिए- गलती पारस्परिक होनी चाहिए। दोनों पक्षकारों को एक दूसरे को गलत समझना चाहिए।

उदाहरण- एम जिसके पास अ तथा ब दो मकान हैं अ मकान को बेचने का प्रस्ताव करता है तथा एन जिसे यह नहीं पता कि एम के पास दो मकान हैं ब मकान का सोचता है तथा इसे खरीदने हेतु तैयार होता है। यहाँ कोई वास्तविक सहमति नहीं है तथा ठहराव व्यर्थ है।

(ii) गलती ठहराव के लिए जरूरी तथ्य के विषय से

सम्बन्धित होनी चाहिए- गलती किसी तथ्य से सम्बन्धित होनी चाहिए न कि निर्णय या राय से तथ्य ऐसा होना चाहिए जो ठहराव के मूल तक जाता हो। कौनसे तथ्य ठहराव के लिए जरूरी हैं यह हर प्रकरण में वचन

की प्रकृति पर निर्भर करेगा।

प्रकरण जो द्विपक्षीय गलती के अन्तर्गत आते हैं: विभिन्न

न्यायिक निर्णयों के आधार पर, गलतियाँ जो द्विपक्षीय गलतियों के अन्तर्गत आती हैं, उन्हें निम्न शीर्षकों के अन्तर्गत रखा जा सकता है-

(b) विषय-वस्तु के अस्तित्व के सम्बन्ध में गलती यदि

दोनों पक्षकार विश्वास करते हैं कि अनुबन्ध की विषय वस्तु अस्तित्व में है जबकि वह विषय वस्तु अस्तित्व में नहीं है, तब अनुबन्ध व्यर्थ होता है।

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