निम्न परिस्थितियों के अन्तर्गत एक शर्त को एक आश्वासन

माना जा सकता है या एक शर्त भंग को एक आश्वासन भंग माना जा सकता है-

(1) जब विक्रय विक्रेता द्वारा पूरी की जाने वाली किसी शर्त के अधीन है- जहाँ विक्रय का एक अनुबन्ध विक्रेता द्वारा पूरी की जाने वाली किसी शर्त के अधीन है वहाँ क्रेता शर्त का त्याग कर सकता है या शर्त भंग को आश्वासन भंग मान सकता है न कि अनुबन्ध को विखण्डित मानने के आधार के रूप में।

(2) जहाँ विक्रय का एक अनुबन्ध अलग-अलग करने योग्य

न हो- जहाँ विक्रय का एक अनुबन्ध अलग-अलग करने योग्य नहीं है तथा क्रेता ने माल या उसका एक भाग स्वीकार कर लिया है, वहाँ विक्रेता द्वारा पूरी की जाने वाली किसी शर्त के भग को आश्वासन का भंग माना जा सकता है न कि माल को अस्वीकार करने तथा अनुबन्ध को

विखण्डित मानने के एक आधार के रूप में।

(3) शर्त के पूरे होने की असंभवता- जब विक्रय के

अनुबन्ध में किसी शर्त के पूरा होने की कानून द्वारा असभवता के आधार पर छूट दी जाती है वहाँ शर्तभंग को आश्वासन भंग माना जाता है।

क्रेता की सावधानी का सिद्धान्त

‘क्रेता की सावधानी’ के सिद्धान्त का अर्थ है कि क्रेता को माल खरीदते समय सावधान रहना चाहिए। क्रेता को वास्तव में खरीदने के पहले माल को उद्देश्य के लिए इसकी उपयुक्तता हेतु परीक्षण करना चाहिए। यह सुनिश्चित करना क्रेता का कर्तव्य है कि जो माल वह खरीदना चाहता है वह क्रय का उद्देश्य पूरा करेगा तथा एक विशिष्ट स्वीकार्य गुणवत्ता का है।

माल विक्रय अधिनियम की धारा 16 के अनुसार, ‘इस अधिनियम तथा अन्य किसी लागू अधिनियम के उपबन्धों के अधीन एक विक्रय अनुबन्ध के अन्तर्गत बेचे गए माल के विशिष्ट उद्देश्य के सम्बन्ध में गुणवत्ता या उपयुक्तता के सम्बन्ध में कोई गर्भित शर्त या आश्वासन नहीं

होता है। अत: बहुत सी गर्भित शर्तों तथा आश्वासन के बावजूद विक्रेता किसी एक विशिष्ट उद्देश्य के लिए उपयुक्त माल की पूर्ति करने हेतु बाध्य नहीं है बल्कि क्रेता को स्वयं इतना सावधान होना चाहिए कि वह माल का परीक्षण करे तथा सुनिश्चित करे कि वह सही तरह के माल

को खरीद रहा है। विक्रेता को हमेशा ऐसे माल की पूर्ति के लिए दोष नहीं दिया जा सकता जो उस उद्देश्य को पूरा नहीं करता जिसके लिए क्रेता इसे खरीदता है।

नियम के अपवाद

‘क्रेता की सावधानी’ के नियम के निम्न कुछ अपवाद हो सकते है –

(1) वर्णन द्वारा विक्रय- यदि क्रेता, विक्रेता को वह उद्देश्य बता देता है जिसके लिए माल खरीदा जाना है तथा क्रेता विक्रेता के कौशल तथा निर्णय पर निर्भर करता है, तब एक गर्भित शर्त होती है कि माल ऐसे उद्देश्य हेतु उचित रूप से उपयुक्त होगा।

(2) गर्भित शर्त का आश्वासन- जहाँ कानून कुछ गर्भित शर्तों तथा आश्वासनों का प्रावधान करता है, वहाँ ‘क्रेता की सावधानी’ के नियम के अनुप्रयोग से बचा जा सकता है।

(3) एक व्यापार नाम के अन्तर्गत विक्रय- जब एक क्रेता इसके व्यापार नाम को उद्धरित करके एक उत्पाद माँगता है तब विक्रेता सही किस्म के माल की पूर्ति से मुक्त नहीं होता।

(4) व्यापारिक गुणवत्ता- जब एक विक्रेता वर्णन द्वारा माल को बेचता है तब उसे व्यापारिक गुणवत्ता के माल की सुपुर्दगी करनी होती है।

(5) व्यापार की रीतियाँ- एक विशिष्ट उद्देश्य के लिए गुणवत्ता द्वारा जोड़ा जा सकता है या उपयुक्तता की एक गर्भित शर्त या आश्वासन को व्यापार की रीतियों ।

(6) कपट द्वारा सहमति- ‘क्रेता की सावधानी’ का नियम वहाँ लागू नहीं होता जहाँ माल के विक्रय के एक अनुबन्ध में क्रेता की सहमति विक्रेता द्वारा माल में छुपे दोष को जानकर छुपाकर या कपट द्वारा प्राप्त |

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