भुगतान करने तथा मूल ऋणी के दायित्व से मुक्ति पाने के बाद, प्रतिभू विभिन्न अधिकार पाता है। ऐसे अधिकार नीचे दिए अनुसार तीन प्रकार के हैं-

(i) मूल ऋणी के विरुद्ध अधिकार, 

(ii) ऋणदाता के विरुद्ध

अधिकार तथा 

(iii) सह प्रतिभूओं के विरुद्ध अधिकार।

1. मूल ऋणी के विरुद्ध अधिकार- प्रतिभू के पास मूल ऋणियों के विरुद्ध निम्न अधिकार होते हैं-

(1) स्थान ग्रहण का अधिकार स्थान ग्रहण’ का अर्थ ऋणदाता के रूप में एक पक्षकार की जगह दूसरे का प्रतिस्थापन है ताकि नया ऋणदाता पहले के अधिकारों का उत्तराधिकारी बने। अनुबन्ध अधिनियम की धारा 140 बताती है कि जब मूल ऋणी ने भुगतान करने में या

प्रतिभूतित कर्त्तव्य के निष्पादन में त्रुटि की है तथा प्रतिभू ने ऋण का भुगतान किया है या कर्तव्य का निष्पादन किया है तब प्रतिभू को वे सब अधिकार प्राप्त हो जाते हैं जो ऋणदाता को मूल ॠणी के विरुद्ध प्राप्त

थे। प्रतिभू का यह अधिकार स्थान ग्रहण का नियम’ कहलाता है। इसका अर्थ है कि प्रतिभू ऋणदाता की जगह ले लेता है।

( 2 ) क्षतिपूर्ति का अधिकार अनुबन्ध अधिनियम की धारा 145 बताती है कि प्रतिभूति के हर अनुबन्ध में मूल ऋणी द्वारा प्रतिभू को क्षतिपूर्ति करने (वापिस भुगतान करने) का एक सांकेतिक वचन होता है तथा प्रतिभू मूल ऋणी से उसके द्वारा प्रतिभूति के अन्तर्गत उचित तरह

से भुगतान की गई किसी भी रकम को पुनर्प्राप्ति का अधिकारी है परन्तु ऐसी रकम नहीं जो उसने गलत तरह से भुगतान की है।

II. ऋणदाता के विरुद्ध अधिकार

प्रतिभू के ऋणदाता के विरुद्ध निम्न अधिकार होते हैं-

(1) प्रतिभूतियों का अधिकार अनुबन्ध अधिनियम की धारा

141 के अनुसार, मूल ऋणी के दायित्व के भुगतान के बाद एक प्रतिभू को हर उस प्रतिभूति के लाभ का अधिकार है जो ऋणदाता को प्रतिभूतिदारी का अनुबन्ध करते समय मूल ऋणी के विरुद्ध प्राप्त थे, भले ही प्रतिभू

ऐसी प्रतिभूति के अस्तित्व को जानता था या नहीं।

(2) मुजरे का दावा करने का अधिकार- ‘मुजराई’ का अर्थ

प्रतिदावा या ऋण की रकम में से कटौती है। जब ऋणदाता प्रतिभू पर मूल ॠणी के दायित्वों के भुगतान हेतु वाद करता है तब प्रतिभू को उस मुजराई का दावा करने का अधिकार है जो मूल ऋणी के पास ऋणदाता के

विरुद्ध था।

III. सह-प्रतिभुओं के विरुद्ध अधिकार-

जब एक ऋण की प्रतिभूति दो या ज्यादा व्यक्तियों द्वारा दी जाती है, तब उन्हें सह प्रतिभू कहा जाता है। सह-प्रतिभुओं का दायित्व उनके पारस्परिक ठहराव के द्वारा प्रतिभूतित ऋण का भुगतान करने की तरफ योगदान करने का होता है। अनुबन्ध अधिनियम की धारा 138 बताती है कि

जहाँ सह प्रतिभू होते हैं तथा उनमें से एक को ऋणदाता द्वारा मुक्त कर दिया जाता है, यह दूसरों को मुक्त नहीं करता तथा साथ ही यह उस प्रतिभू को जिसे इस तरह मुक्त कर दिया गया है, अन्य प्रतिभुओं के प्रति उसकी जिम्मेदारी से स्वतंत्र नहीं करता। अतः जहाँ बहुत से सह-प्रतिभु हैं तथा

उनमें से एक को मूल ऋणी के पूर्ण ऋण का भुगतान करने के लिए विवश किया गया है, ऐसे एक सह-प्रतिभू को अन्य सह-प्रतिभुओं के विरुद्ध निम्न अधिकारों का अधिकार होता है-

(1) समान योगदान – अनुबन्ध अधिनियम की धारा 146 प्रावधान करती है कि जहाँ समान ऋण या कर्त्तव्य के लिए एक दूसरे की जानकारी के साथ या बिना दो या ज्यादा सह-प्रतिभू हैं, तब किसी विपरीत अनुबन्ध की अनुपस्थिति में, सह प्रतिभू मूल ऋणी की त्रुटि की सीमा  तक समान रूप से योगदान करने हेतु बाध्य होते है।

( 2 ) सह-प्रतिभुओं का दायित्व विभिन्न रकमों द्वारा बाध्य |

अनुबन्ध अधिनियम की धारा 147 के अनुसार जहाँ सह-प्रतिभुओं ने विभिन्न रकमों की प्रतिभूति देना तय किया है वहाँ वे हर एक द्वारा  प्रतिभूतित अधिकतम रकम के अनुसार समान रूप से योगदान करने हेतु दायित्वाधीन हैं। अन्य शब्दों में, जहाँ तक उनके सम्बन्धित दायित्वों की सीमाएं अनुमति देती हैं वहाँ तक वे बराबर 

भुगतान करने हेतु दायित्वाधीन है।

(3) प्रतिभूतियों के लाभों में साझा करने का अधिकार जहाँ

प्रतिभूति के समय पर सह-प्रतिभुओं में से एक मूल ऋणी से एक प्रतिभूति प्राप्त करता है या ऋण के भुगतान पर वह ऋणदाता प्रतिभूति प्राप्त करता है, अन्य सह-प्रतिभू ऐसे प्रतिभूतियों के लाभों का समान साझा करने के अधिकारी होते हैं। अस्त: सह-प्रतिभू बराबर योगदान करने हेतु दायित्वाधीन होते हैं तथा किसी लाभ का समान बँटवारा करने हेतु अधिकारी होते हैं।

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