मिथ्या व्यपदेशन

अनुबंध के लिए एक जरूरी तथ्य के गलत विवरण का अर्थ

मिथ्या व्यपदेशन होता है।

भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 18 के अनुसार ‘मिथ्या व्यपदेशन का निम्न अर्थ है तथा इसमें शामिल हैं:

मिथ्या व्यपदेशन एक असत्य कथन है जो एक व्यक्ति द्वारा दिया जाता है-

1.जहाँ पक्षकार मिथ्या व्यपदेशन या कपट की जानकारी के बिना अनुबन्ध में प्रवेश करता है।

2.सका दूसरे को धोखा देने का या दूसरे को mislead करके लाभ प्राप्त करने का कोई इरादा नहीं है।

3.मिथ्या व्यपदेश एक असत्य कथन है जिसे इसे देने वाला व्यक्ति अन्य पक्षकार को धोखा देने के इरादे के बिना, सत्य होने का विश्वास करता है।

उदाहरण

A यह कहकर B को उसके घोड़े को बेचता है कि

घोड़ा स्वस्थ है। लेकिन वास्तव में घोड़ा अस्वस्थ है, जिसका A को कोई ज्ञान नहीं है। बाद में B घोड़े को अस्वस्थ पाता है। यहाँ, यह मिथ्या व्यपदेशन का एक प्रकरण है।

मिथ्या व्यपदेशन की जरूरतें

जो विश्वास करता है कि यह सत्य है या वह यह नहीं जानता कि यह असत्य है; तथा को संतुष्ट करता है-

1.एक मिथ्या व्यपदेशन महत्त्वपूर्ण होता है यदि वह निम्न जरूरतों यह एक महत्त्वपूर्ण तथ्य का प्रतिनिधित्व होना चाहिए। 

2.सिर्फ राय की अभिव्यक्ति मिथ्याव्यपदेशन नहीं होती जाना चाहिए।

3.इसे अन्य पक्षकार द्वारा अनुबन्ध में प्रवेश करने के पहले किया किया हो।

4.इस पर कार्य किया जाना चाहिए एवं इसने अनुबन्ध को प्रेरित यह असत्य होना चाहिए परन्तु इसे करने वाला व्यक्ति ईमानदारी से इसके सत्य होने का विश्वास करता हो।

5.इरादा अन्य पक्षकार को धोखा देने का नहीं होना चाहिए।

मिथ्या व्यपदेशन के परिणाम

मिथ्या व्यपदेशन की स्थिति में पीड़ित पक्ष

1.अनुबन्ध से बचाव या उसे खत्म कर सकता है।

2.अनुबन्ध को इस शर्त पर स्वीकार कर सकता है कि किया गया कथन सत्य था।

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