विक्रय के अनुबन्ध का अर्थ

वस्तु विक्रय अधिनियम, 1930 की धारा 4(1) के अनुसार ‘विक्रय का अनुबन्ध एक ऐसा अनुबन्ध है जिसके द्वारा विक्रेता क्रेता को एक कीमत के लिए माल में सम्पत्ति हस्तान्तरित करता है या हस्तान्तरित

करने के लिए तैयार होता है’। शब्दावली ‘विक्रय का अनुबन्ध’ एक generic शब्दावली है एवं इसमें एक ‘विक्रय’ तथा एक ‘विक्रय का ठहराव’ दोनों शामिल होते हैं।

विक्रय के अनुबन्ध का निर्माण

 एक विक्रय अनुबन्ध एक कीमत के लिए माल के क्रय या विक्रय प्रस्ताव तथा ऐसे प्रस्ताव की स्वीकृति द्वारा बनाया जाता है। अनुबन्ध में माल की तात्कालिक सुपुर्दगी या कीमत का तात्कालिक भुगतान या दोनों या किश्तों में सुपुर्दगी या भुगतान के लिए या सुपुर्दगी या भुगतान

का स्थगन या दोनों का प्रावधान होता है। एक विक्रय अनुबन्ध लिखित में या मुँह से बोले शब्दों द्वारा या आंशिक रूप से लिखित तथा आंशिक मुँह के शब्दों द्वारा बनाया जा सकता है या पक्षकारों के व्यवहारों से सांकेतिक हो सकता है।

विक्रय के अनुबन्ध के अनिवार्य लक्षण या

विशेषताएं

एक विक्रय अनुबन्ध किसी अन्य अनुबन्ध की तरह होता है एवं इसलिए इसे भारतीय अनुबन्ध अधिनियम की धारा 10 में दिए गए एक अनुबन्ध के सभी अनिवार्य लक्षणों को संतुष्ट करना चाहिए। एक विक्रय अनुबन्ध के अनिवार्य लक्षण निम्न हैं-

(1) क्रेता तथा विक्रेता- एक विक्रय अनुबन्ध में दो पक्षकार

क्रेता तथा विक्रेता के नाम से होने चाहिए। क्रेता तथा विक्रेता दो भिन्न व्यक्ति होते हैं क्योंकि कोई भी स्वयं उसका माल नहीं खरीद सकती।

(2) माल विक्रय की विषय वस्तु कुछ ‘माल’ होना चाहिए।

जिसमें चल तथा अचल दोनों प्रकार शामिल हो सकते हैं।

(3) मूल्य माल के विक्रय का प्रतिफल कुछ ‘मूल्य’ होना

चाहिए। जब माल का माल के लिए विनिमय किया जाता है तब इसे वस्तु विनिमय कहा जाता है तथा यह ‘विक्रय’ नहीं होता।

(4) सम्पत्ति का हस्तान्तरण- एक विक्रय अनुबन्ध का सार

स्वामित्व का हस्तान्तरण है। कोई भी ठहराव जो स्वामित्व के हस्तान्तरण का परिणाम नहीं देता, उसे एक विक्रय अनुबन्ध नहीं कहा जा सकता है।

(5) एक वैध अनुबन्ध के तत्त्व – एक विक्रय अनुबन्ध में एक वैध अनुबन्ध के सभी अनिवार्य लक्षण समाहित होने चाहिए। एक विक्रय अनुबन्ध समग्र या शर्तपूर्ण हो सकता है।

विक्रय के ठहराव का अर्थ

वस्तु विक्रय अधिनियम की धरा 4(3) के अनुसार, जहाँ एक विक्रय अनुबन्ध के अन्तर्गत माल में सम्पत्ति की सुपुर्दगी एक भावी दिनांक पर या कुछ शर्तों के अधीन होनी है, तब इसे एक ‘विक्रय का ठहराव’ कहा जाता है।

एक विक्रय का ठहराव तब विक्रय बन जाता है जब समय बीत जाता है या वे शर्तें पूरी हो जाती हैं जिनके अधीन माल में सम्पत्ति का हस्तान्तरण होना है। जब तक माल में सम्पत्ति विक्रेता से क्रेता को हस्तान्तरित नहीं की जाती, तब तक नहीं कहा जा सकता कि विक्रय हो गया है।

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