एक वैध अनुबंध के लिए दो अनिवार्यताओं अर्थात् प्रस्ताव एवं सहमति तथा पक्षकारों के बीच में संविदा करने की क्षमता के बाद ज्यादा महत्त्वपूर्ण तीसरी जरूरत ‘स्वतंत्र सहमति’ है। स्वतंत्र सहमति को समझने के पहले, यह समझना जरूरी है कि ‘सहमति’ क्या है।

किसी प्रस्ताव के प्रति दो या ज्यादा लोगों की सहमति सिर्फ उस होते हैं। समय मानी जाती है जब वे दोनों समान मुद्दे पर समान भाव से सहमत भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 13 के अनुसार दो या ज्यादा व्यक्ति सहमत कहे जाते हैं, जब वे समान चीज पर समान भाव से एकमत होते हैं। अतः मस्तिष्कों का मिलना एकमत सहमति के लिए एक

पूर्व शर्त है। यदि दो व्यक्तियों की रायें या विचार एक दूसरे से भिन्न हैं,

तब विचारों में समानता नहीं होगी एवं इस तरह कोई ‘सहमति’ नहीं उदाहरण के लिए मुकेश, महेश को उसकी घड़ी 100 रु. वे मूल्य के लिए बेचने का प्रस्ताव करता है। महेश उस प्रस्ताव को स्वीकार करता

है। यहाँ सहमति उपस्थित मानी जाएगी क्योंकि दोनों पक्षकार समान विचार के साथ समान चीज पर सहमत हुए हैं।

सहमति की अनिवार्यताएं

ऊपर दी गई परिभाषा के आधार पर ‘सहमति’ की निम्न अनिवार्यताएं

(1) दो व्यक्तियों की उपस्थिति : एक ठहराव की सहमति के लेकिन उससे कम नहीं होनी चाहिए।

लिए कम से कम दो व्यक्ति होने चाहिए। संख्या दो से ज्यादा हो सकती है।

(2) समान चीज के ऊपर समान भाव से एकमतताः सहमति के लिए यह जरूरी है कि दोनों पक्षकार समान चीज पर समान भाव से सहमत हों। उदाहरण के लिए सुशीला ने शीला को उसके ब्रेसलेट को बेचने का प्रस्ताव किया लेकिन शीला इसे कान के बूंदों को बेचने का

प्रस्ताव मानती है। यह सहमति नहीं होगी क्योंकि दोनों पक्षकार भिन्न चीजों के संबंध में एकमत हुए हैं। वास्तव में कुछ मानसिक समायोजन होना चाहिए, जिसके बिना सहमति कभी उत्पन्न नहीं हो सकती।

स्वतंत्र सहमति का अर्थ

एक अनुबंध की वैधता के लिए सहमति स्वतंत्र तथा वास्तविक होनी चाहिए। भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 14 के अनुसार, सहमति स्वतंत्र होती है, जब यह निम्न द्वारा कारित नहीं होती है:

1.उत्पीड़न (धारा 15)

2.अनुचित प्रभाव (धारा 16)

3.कपट (धारा 17)

4.मिथ्या व्यपदेशन (धारा 18) तथा

5.गलती (धारा 20-22)

निम्न दशाएं हैं जिनके अंतर्गत सहमति को स्वतंत्र नहीं कहा

जाएगा।

(1) उत्पीड़न

जब एक व्यक्ति दूसरे पक्षकार को शक्ति या धमकी के प्रयोग द्वारा एक अनुबंध करने के लिए बाध्य करता है, तब उसके द्वारा उत्पीड़न का प्रयोग करना कहा जाता है तथा सहमति स्वतंत्र नहीं होती है। भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 15 के अनुसार ‘उत्पीड़न किसी व्यक्ति को एक

अनुबंध करने के लिए कारित करने के इरादे से भारतीय दंड संहिता द्वारा प्रतिबंधित किसी कार्य को करना या करने की धमकी देना या किसी संपत्ति को रोकना या रोकने की धमकी देना या किसी तरह से किसी

व्यक्ति के पक्ष में काम करना है।

उदाहरण: मुकेश ने महेश को एक विशिष्ट अनुबंध पर हस्ताक्षर करने के लिए कहा, अन्यथा उसके पुत्र को चाकू मार दिया जाएगा। महेश द्वारा हस्ताक्षर करने पर यह माना जायेगा कि अनुबंध उत्पीड़न केअंतर्गत किया गया था। ऐसे अनुबंध पीड़ित पक्षकार के विवेक पर व्यर्थनीय होते हैं।

उत्पीड़न का प्रभाव

जब एक ठहराव की सहमति उत्पीड़न द्वारा कारित की जाती है, तब ठहराव उस पक्षकार की इच्छा पर व्यर्थनीय होता है जिसकी सहमति ऐसे कारित की गई थी (धारा 19) धारा 72 के अनुसार, एक व्यक्ति जिसे गलती से या उत्पीड़न के अन्तर्गत पैसा भुगतान किया गया है या कोई चीज की सुपुर्दगी की गई है, उसे इसे पुनर्भुगतान या वापस करना चाहिए।

उत्पीड़न द्वारा लाया गया अनुबन्ध उस पक्षकार की इच्छा पर व्यर्थनीय होता है जिसकी सहमति ऐसे कारित की गई थी (धारा 19) इसका अर्थ है कि पीड़ित पक्षकार या तो परित्याग के अधिकार का प्रयोग करके संव्यवहार की पुष्टि का विकल्प ले सकता है। धारा 64 के अनुसार

यदि पीड़ित पक्षकार एक व्यर्थनीय अनुबन्ध के परित्याग का विकल्प लेता है तब उसे अनुबन्ध के अन्तर्गत प्राप्त किसी लाभ को उस अन्य पक्ष को बहाल करना चाहिए जिससे प्राप्त किया गया था।

यह सिद्ध करने का भार कि उत्पीड़न प्रयोग किया गया था उस चाहता है।पक्षकार पर होता है जो उत्पीड़न के आधार पर अनुबन्ध को रद्द करवाना

(2) अनुचित प्रभाव जब ठहराव का एक पक्षकार दूसरे पक्षकार को उसकी इच्छा के विरुद्ध उसकी सहमति देने के लिए बाध्य करता है क्योंकि वह ऐसी स्थिति में होता है कि वह दूसरे पक्षकार को ऐसा करने के समझाने के लिए उसके दबाव का प्रयोग कर सकता है, तब यह अनुचित प्रभाव की स्थिति होती है। अनुचित प्रभाव को तब उपस्थित कहा जाता है जब दो पक्षकारों के

बीच में किसी विशेष प्रकार का संबंध उपस्थित होता है।

भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 16 के अंतर्गत “एक

अनुबंध को ‘अनुचित प्रभाव’ द्वारा प्रेरित कहा जाता है जहाँ पक्षकारों के बीच में उपस्थित संबंध इस प्रकार के होते हैं कि पक्षकारों में से एक दूसरे की इच्छा पर नियंत्रण करने की स्थिति में होता है तथा इस स्थिति का प्रयोग दूसरे के ऊपर अनुचित लाभ प्राप्त करने के लिए करता है।”

ऐसे कुछ संबंध शिक्षक विद्यार्थी, पिता-पुत्र, डॉक्टर मरीज, वकील- मुवक्किल आदि के बीच में होते हैं, कि एक पक्षकार अन्य पक्षकार की इच्छाओं को प्रभावित कर सकता है। इन अनुबंधों में यह सिद्ध करने का

भार कि अनुचित प्रभाव का प्रयोग किया गया है, वह उस व्यक्ति के ऊपर होगा, जिसके ऊपर ऐसे प्रभाव का प्रयोग किया गया है। उदाहरण: (अ) नरेन्द्र ने उसके पुत्र मोहन को उसकी अवयस्कता के दौरान पैसा दिया था। मोहन के वयस्कता प्राप्त करने पर, नरेन्द्र पालकात्मक प्रभाव का गलत प्रयोग करके वास्तविक दी गई रकम से

ज्यादा रकम का एक बॉण्ड प्राप्त कर लेता है। नरेन्द्र द्वारा अनुचित प्रभाव का प्रयोग करना कहा जाता है।

(ब) किसी बीमारी से पीड़ित देवेश को उसके मेडिकल अटेंडेंट नीलेश द्वारा उसकी मेडिकल सेवाओं के लिए अनुचित रकम का भुगतान करने के लिए प्रेरित किया जाता है। नीलेश द्वारा उसके मरीज देवेश के

ऊपर एक मेडिकल अटेंडेंट के रूप में अनुचित प्रभाव का प्रयोग करना कहा जाएगा।

अनुचित प्रभाव का असर जब एक ठहराव में पक्षकारों की

सहमति अनुचित प्रभाव द्वारा कारित की जाती है, तब ठहराव उस पक्षकार की इच्छा पर व्यर्थनीय होता है जिसकी सहमति ऐसे प्राप्त की गई थी। ऐसा अनुबन्ध पूर्णतः खत्म किया जा सकता है। जब वह पार्टी

जो अनुबन्ध से बचाव हेतु अधिकार सम्पन्न है, उसने इसके अन्तर्गत कोई लाभ प्राप्त किया है, तो उसे वह न्यायालय द्वारा उचित तथा साम्य समझे जाने वाली शर्तों तथा स्थितियों पर इसे वैध कर सकता है।

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