माल के विक्रय के अनुबन्ध भंग की स्थिति में पीड़ित पक्षकारों के रूप में क्रेता या विक्रेता को नीचे दिए अनुसार कुछ उपचार दिए गए हैं-
क्रेता को उपलब्ध उपचार
वस्तु विक्रय अधिनियम की धारा 57, 58 तथा 59 के अन्तर्गत विक्रेता द्वारा अनुबन्ध भंग की स्थिति में क्रेता के लिए निम्न उपचार उपलब्ध होते हैं-
(1) वाद प्रस्तुत करना यदि विक्रेता क्रेता को दोषपूर्ण ढंग से माल की सुपुर्दगी देता है या सुपुर्दगी देने में उपेक्षा करता है तो क्रेता उसके विरुद्ध हानि या हर्जाने के लिए वाद प्रस्तुत कर सकता है।
(2) विशिष्ट निष्पादन के लिए वाद प्रस्तुत करना यदि
विक्रय अनुबन्ध किसी विशिष्ट वस्तु के लिए किया गया है तथा विक्रेता उसके लिए अनुबन्ध का निष्पादन नहीं करता है तो क्रेता विक्रेता पर उस विशिष्ट वस्तु के निष्पादन के लिए एक वाद दायर कर सकता है।
(3) विश्वास भंग के लिए वाद प्रस्तुत करना- यदि विक्रेता ने
विश्वास भंग किया है या क्रेता की दृष्टि में विश्वास भंग के रूप में कोई शर्त है तथा ऐसे विश्वास भंग के कारण वह माल लेने से मना नहीं कर सकता है, ऐसी स्थिति में क्रेता को निम्न उपचार प्राप्त होते हैं-
1.ऐसे वचन भंग के कारण वह वस्तु का मूल्य कम करा सकता है।यदि उसने विक्रेता को मूल्य नहीं चुकाया है।
2.विक्रेता को उपलब्ध उपचार क्रेता द्वारा अनुबन्ध भंग की स्थिति में विक्रेता के पास निम्न विकल्प उपलब्ध होते हैं-
वह विक्रेता के विरुद्ध हर्जाने हेतु एक वाद दायर कर सकता है।
यदि उसने विक्रेता को मूल्य चुका दिया है।
(1) अदत्त विक्रेता के माल के विरुद्ध अधिकार-
जब माल में सम्पत्ति का हस्तान्तरण हो गया है-
(अ) गृहणाधिकार का अधिकार
ब.माल को रास्ते में रोकने का अधिकार
स.पुनर्विक्रय का अधिकार
2.जब माल में सम्पत्ति का हस्तान्तरण नहीं हुआ है- सुपुर्दगी को रोकने का अधिकार
3. अदत्त विक्रेता के क्रेता के विरुद्ध व्यक्तिगत अधिकार
1.मूल्य के लिए वाद का अधिकार
2.हजने के लिए बाद का अधिकार
3.ब्याज के लिए वाद का अधिकार
विषय वस्तु के नष्ट होने के प्रभाव
वस्तु विक्रय अधिनियम की धाराएं 7 तथा 8 में विक्रय की संविदा के पक्षकारों के अधिकारों तथा दायित्वों पर वस्तुओं के नष्ट होने के प्रभावों का वर्णन करती है। माल नष्ट होना कहा जाता है जब वे संविदा के पहले तथा बाद में भौतिक या व्यावसायिक रूप से उपस्थित होना खत्म हो जाते हैं। माल के नष्ट होने के प्रभाव निम्न शीर्षकों के अंतर्गत
वर्णित किए जा सकते हैं-
(1) संविदा के बनाने से पहले माल का नष्ट होना (धारा 7)-
अधिनियम की धारा 7 के अनुसार ‘जब विशिष्ट माल के विक्रय के लिए संविदा होती है तब संविदा व्यर्थ होती है यदि विक्रेता की जानकारी के बिना माल, उस समय जब संविदा की गई थी नष्ट हो गया था या इस
तरह क्षतिग्रस्त हो गया कि संविदा में उनके वर्णन के अनुसार नहीं रहा।जहाँ विशिष्ट माल विक्रय के एक अनुबंध की विषय वस्तु होता है तथा विक्रेता की जानकारी के बिना संविदा केसमय या उसके पहले नष्ट हो
जाता है, तब संविदा व्यर्थ होती है। यह प्रावधान पारस्परिक गलती या निष्पादन की असंभवता के आधार पर आधारित है।
जहाँ विशिष्ट माल के विक्रय के लिए एक संविदा में, माल का सिर्फ कुछ भाग नष्ट या खत्म हुआ है, तब नष्ट होने का प्रभाव इस बात पर निर्भर करेगा कि संविदा संपूर्ण है या विभाजनीय है। यदि यह संपूर्ण
(अविभाजनीय) है तथा माल का सिर्फ कुछ भाग नष्ट हुआ है, तब संविदा व्यर्थ है। यदि संविदा विभाजनीय है तब यह नहीं होगी तथा अच्छी दशा में उपलब्ध भाग क्रेता द्वारा स्वीकार किया जाना चाहिए।
उदाहरण- अ, ब को एक विशिष्ट कारगो बेचने को तैयार होता है जो इंग्लैंड से बंबई के रास्ते में माना जा रहा है। पता चलता है कि सौदे के दिन के पहले कारगो ले जा रहा जहाज बह गया है तथा माल खो गया है। कोई पक्षकार तथ्यों का जानकार नहीं था। अनुबंध व्यर्थ है।
इस धारा के अंतर्गत एक संविदा को व्यर्थ बनाने के लिए, निम्न दशाएं पूरी की जानी चाहिए-
1.संविदा विशिष्ट माल के विक्रय के लिए होनी चाहिए।
2.संविदा के होने के पहले माल के विक्रय के लिए होनी चाहिए।
3.विक्रेता को माल के नष्ट होने की जानकारी नहीं थी।
(2) माल विक्रय के पहले पर विक्रय के अनुबंध के बाद नष्ट
होना (धारा 8)- वस्तु विक्रय अधिनियम की धारा 8 निम्न तरह है ‘जब विशिष्ट माल विक्रय करने की एक संविदा है, तथा उसके बाद माल विक्रेता या क्रेता की किसी त्रुटि के बिना, नष्ट हो जाता है या इस तरह से क्षतिग्रस्त हो जाता है कि अनुबंध में उनके वर्णन के
अनुसार नहीं रहता, इसके पहले कि जोखिम क्रेता के पास चला जाए, तब अनुबंध से बचा जा सकता है।’ ऐसी स्थितियों में विक्रय का अनुबंध व्यर्थ हो जाता
है यदि अनुबंध विशिष्ट माल के विक्रय का है तथा माल विक्रेता या क्रेता की किसी त्रुटि के बिना नष्ट होता है। यह प्रावधान निष्पादन की गतिरोधक असंभाव्यता के आधार पर आधारित है जो एक संविदा को व्यर्थ बनाता है।
यदि विक्रय के लिए तय माल का सिर्फ एक भाग नष्ट होता है। तब संविदा व्यर्थ होती है यदि यह अविभाजनीय है। लेकिन यदि यह विभाजनीय है तब पक्षकार उनके दायित्वों से माल के नष्ट होने की सीमा तक ही मुक्त होते हैं अर्थात् संविदा अच्छी दशा में उपलब्ध भाग के
संबंध में वैध रहती है।