कपट का अर्थ निम्न होता है व इसमें शामिल होता है अन्य
पक्षकार को धोखा देने तथा इसे प्रस्ताव पर उसकी सहमति देने तथा एक अनुबंध करने के लिए प्रेरित करने के इरादे से असत्य जानते हुए एक गलत कथन को कहना या जानकर एक जरूरी तथ्य को छुपाना।
भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 17 के अनुसार ‘कपट का अर्थ निम्न होता है व इसमें अन्य पक्षकार या उसके अभिकर्ता को धोखा देने या उसे अनुबंध करने के लिए प्रेरित करने के इरादे से एक अनुबंध को
पक्षकार या उसकी सहमति से उसके अभिकर्ता द्वारा किए निम्न कार्यों में से कोई शामिल होता है:
1.एक तथ्य के रूप में उसका ऐसे व्यक्ति द्वारा सुझाव, जो इसे सत्य नहीं मानता है।
2.किसी व्यक्ति द्वारा तथ्य की जानकारी या विश्वास होने पर तथ्य का क्रियाशील छुपाना।
3.इसे निष्पादित करने का इरादा हुए बिना वायदा करना।
4.धोखा देने के लिए फिट कोई अन्य कार्य।
4.कोई ऐसा कार्य या लोप जिसे कानून विशिष्टतः कपटपूर्ण
घोषित करता है।
कपट में कोई कार्य या लोप शामिल होता है जिसका
इरादा अन्य पक्षकार को धोखा देना व उसे एक अनुबंध करने के लिए।
कपट के अनिवार्य तत्त्व
(1) कुछ प्रतिनिधित्व होना चाहिए एवं असत्य हो- सबसे
पहले, कुछ प्रतिनिधित्व होना चाहिए तथा यह असत्य हो। पुनः इसे जानकर अन्य पक्षकार को धोखा देने के लिए किया गया होना चाहिए।
यदि कथनकार समझता है कि उसका कथन सत्य है, तब वह कपट के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता भले ही उसने गलत सलाहपूर्ण तथा मूर्खतापूर्ण कथन दिया है। संक्षेप में, एक कवन सिर्फ तब कपटपूर्ण कहा जाता है जब यह असत्य है तथा जानकर किया गया है।
(2) कथन एक जरूरी तथ्य से सम्बन्धित होना चाहिए- कवन एक जरूरी तथ्य से सम्बन्धित होना चाहिए। सिर्फ एक राय, अभिव्यक्ति उदाहरण- अ व से कहता है कि इस मूल्य पर ये बाजार में अनुध की समाप्ति से पूर्व किया जाना
चाहिए कोई भी जो असत्य है तथा अन्य पक्ष को धोखा देने के में आता है।
3. ऐसा कथन या तो अनुबन्ध के पक्षकार द्वारा या उसके पर कार्य करने हेतु प्रेरित हुआ हो सिर्फ एक असत्य प्रतिनिधित्व एक का देने के लिए पर्याप्त नहीं होता है। अन्य पक्षकार ने इस कथन पर भरोसा करके कार्यवाही की होनी चाहिए। यदि प्रतिनिधित्व वाला नहीं कहा जा सकता। इसी प्रकार यदि कोई स्पष्ट त्रुटि या कमी थी जो
निरीक्षण द्वारा उचित तरह से अनुसंधानित की जा सकती थी, तब अन्य कपट के परिणाम कारट द्वारा प्रेरित एक अनुबन्ध defrauded तब यह वैध होता है। एक पक्षकार जिसे कपट द्वारा एक अनुबन्ध में प्रवेश
करने हेतु वाध्य किया गया है उसके पास निम्न उपचार होते हैं-
(1) वह अनुबन्ध को रद्द कर सकता है। अन्य शब्दों में वह
अनुबन्ध के निष्पादन से बच सकता है। लेकिन यह पर्याप्त समय के अन्दर किया जाना चाहिए। यदि इस अंतराल में, एक तीसरा पक्षकार जो इस तथ्य को नहीं जानता, उसने सम्पत्ति में मूल्य के लिए एक हित प्राप्त कर लिया है तो वह content को रद्द नहीं कर सकता।
(2) वह कह सकता है कि अनुबन्ध का निष्पादन किया जाए तथा उसे ऐसी स्थिति में रखा जाए जिसमें वह तब होता यदि कथन सत्य होता।
(3) पीड़ित पक्षकार हजनि के लिए (यदि कोई हो तो) मुकदमा कर सकता है। यदि पक्षकार किसी क्षति से पीड़ित है, तब वह क्षतिपूर्ति की माँग कर सकता है।
ध्यान दिए जाने योग्य विशेष बिन्दु :
1.यदि कपट अनुबन्ध के लिए अपरिचित द्वारा है तब वह अनुबन्ध को प्रभावित नहीं करता। यह नोट किया जाना चाहिए कि अनुबन्ध के लिए अपरिचित द्वारा उत्पीड़न तथा अनुचित प्रभाव अनुबन्ध को प्रभावित करते हैं।
2.अन्य पक्षकार ने कपटपूर्ण कथन द्वारा धोखा खाया होना चाहिए।
3.कपटपूर्ण कथन ने अन्य पक्षकार को अनुबन्ध करने हेतु प्रेरित किया होना चाहिए।
अपवाद
जब अनुबन्ध के एक पक्षकार की सहमति मिथ्या व्यपदेशन या कपट द्वारा प्राप्त की गई थी, तब ठहराव उस पक्षकार की इच्छा पर व्यर्थनीय होता है जिसकी सहमति ऐसे ली गई थी। लेकिन निम्न प्रकरणों में अनुबन्ध व्यर्थनीय नहीं होता है-
1.जहाँ वह पक्षकार जिसकी सहमति मिथ्या व्यपदेशन या कपट द्वारा प्राप्त की गई थी, सामान्य सावधानी से सत्य का पता लगा।
2.जहाँ तृतीय पक्षकार अनुबन्ध की समाप्ति के पहले अनुबन्ध में प्रवेश करता है।