अनुबंधों को मोटे तौर पर निम्न तरह वर्गीकृत किया जा सकता प्रवर्तनीयता के आधार पर

(1) वैघ अनुबंध : अनुबंध को जो अधिनियम की धारा 10 में बताई गई सभी अनिवार्यताओं को संतुष्ट करते हैं, वे कानून के न्यायालय में प्रवर्तनीय होते हैं तथा उन्हें वैध अनुबंध कहा जाता है।

उदाहरण के लिए अ, उसकी कार 40,000 रु. में ब को बेचने का प्रस्ताव करता है। ब इसे उस मूल्य में खरीदने को तैयार होता है। अ तथा ब दोनों एक अनुबन्ध करने के लिए सक्षम है। यह एक वैध अनुबन्ध है।

(2) व्यर्थ अनुबंध : अनुबंध जो कानून द्वारा प्रवर्तनीय थे, जब वे किए गए थे, लेकिन बाद में किन्हीं कारणों से व्यर्थ तथा गैर प्रवर्तनीय बन गए, को व्यर्थ अनुबंध कहा जाता है। व्यर्थ अनुबंधों के विभिन्न उदाहरण निम्न प्रकार हैं –

1.जब अनुबंध का विषय असंभव या गैरकानूनी बन जाता है।

2.जब वह पक्षकार, जिसे इसे रद्द करने का विकल्प था, वह अनुबंध को अस्वीकार करने का तय करता है, तथा

3.जब सांयोगिक अनुबंध के अंतर्गत उस घटना के घटने पर किसी चीज के करने की घटना असंभव हो जाती है।

उदाहरण- ‘x’ कुछ माल ‘y’ को जो एक विदेशी देश में रहता है,पूर्ति करने का अनुबन्ध करता है। इसके बाद उन देशों के बीच में युद्ध की घोषणा हो जाती है जहाँ ‘x’ तथा ‘y’ रहते हैं। अनुबन्ध व्यर्थ हो जाता है।हालांकि इसके निर्माण के समय यह वैध था

(3) व्यर्थनीय अनुबंध एक ठहराव जो एक या ज्यादा पक्षकारों के विकल्प पर प्रवर्तनीय है परंतु अन्य या अन्यों के विकल्प पर प्रवर्तनीय नहीं हो, वह एक व्यर्थनीय अनुबंध होता है। अतः एक व्यर्थनीय अनुबंध तब तक वैध रहता है जब तक यह ऐसा करने के लिए सक्षम पक्षकार द्वारा अस्वीकार या खारिज नहीं किया जाता है।

(4) गैरकानूनी अनुबंध: सभी गैरकानूनी ठहराव व्यर्थ होते हैं लेकिन सभी व्यर्थ ठहराव गैरकानूनी नहीं होते। एक अवैध ठहराव एकदम प्रारंभ से ही कानून द्वारा प्रवर्तनीय नहीं होता अतः कोई भुगतान किए गए पैसे या हस्तांतरित संपत्ति को फिर से प्राप्त नहीं किया जा सकता। उदाहरण- अ, ब को 50,000 रु. देने के लिए तैयार होता है यदि वह स की हत्या कर दे। यह ठहराव अवैध है क्योंकि एक व्यक्ति की हत्या करना अपराध है।

(5) अप्रवर्तनीय अनुबंध कुछ अनुबंध व्यर्थ हो जाते हैं

क्योंकि कानून के न्यायालय उन्हें किसी तकनीकी त्रुटि के कारण प्रवर्तनीय नहीं करते, तब भी जब उनमें एक वैध अनुबंध की सभी अनिवार्यताएं होती हैं। उदाहरण के लिए यदि अनुबंध के अंतर्गत एक दस्तावेज पर कम टिकिट लगे हैं, तब यह तब तक अप्रवर्तनीय होगा जब तक जरूरी टिकिट लगा नहीं दिए जाते।

निर्माण के प्रकार के आधार पर

(1) स्पष्ट अनुबंध : बोले गए या लिखे गए शब्दों द्वारा पक्षकारों के बीच में प्रवेशित अनुबंध, स्पष्ट अनुबंध कहलाते हैं। ऐसे प्रकरणों में, पक्षकार, उनकी शर्तों तथा इरादों को मौखिक रूप से या लिखित में तय कर सकते हैं।

(2) गर्मित अनुबंध अनुबंध जो स्पष्ट लिखे या बोले शब्दों

द्वारा नहीं किए जाते हैं तथा पक्षकारों के कार्यों या व्यवहार के आधार पर उत्पन्न होते हैं, को गर्भित अनुबंधों के रूप में जाना जाता है।

(3) अर्द्ध-अनुबन्ध- यह एक अनुबन्ध है जिसमें किसी पक्षकार का अनुबन्ध करने का कोई इरादा नहीं होता लेकिन विधि एक अनुबन्ध लागू करती है। ऐसे अनुबन्ध में अधिकार तथा दायित्व ठहराव द्वारा उत्पन्न होते वरन् विधि के ऑपरेशन से होते हैं।

उदाहरण के लिए अ को सड़क पर कुछ सामान मिला। वह

वास्तविक मालिक को ढूँढ़ने व सामान को लौटाने हेतु बाध्य है। यहाँ स्थिति के कारण, अ तथा सामान के मालिक के बीच एक विधिक सम्बन्ध निर्मित हो गया है। 

क्रियान्वयन की सीमा के आधार पर

( 1 ) निष्पादित अनुबंध : अनुबंध जिनके अंतर्गत, अनुबंध के दोनों पक्षकारों ने उनके संबंधित दायित्व पूरे कर दिए हैं, एवं इस तरह किसी पक्षकार द्वारा करने के लिए कुछ बाकी नहीं है, को निष्पादित अनुबंध कहा जाता है।

उदाहरण के लिए-अ ने ब से एक कार 50,000 रु. में खरीदी।  मूल्य का भुगतान किया तथा ब ने कार की सुपुर्दगी कर दी। यह एक निष्पादित अनुबन्ध है क्योंकि दोनों पक्षों ने उनके दायित्वों का निष्पादनकर दिया है।

(2) निष्पादकीय अनुबंध : अनुबंध जिनके अंतर्गत अनुबंध के दोनों या किसी एक पक्षकार को भविष्य में कुछ चीजें अभी भी निष्पादितकरनी हैं, को निष्पादनीय अनुबंध कहा जाता है।

लेकिन जब एक पक्षकार ने इसके वचन को निष्पादित कर दिया है तथा दूसरे को अभी इसे निष्पादित करता है, तब अनुबंध को आंशिक रूप से निष्पादित तथा आंशिक रूप से निष्पादनीय माना जाएगा।

उदाहरण के लिए अ ने ब को उसकी पुस्तक अगले हफ्ते 100 रु. में बेचने का वचन दिया तथा ब ने भी रकम भुगतान करने का वचन दिया। यह एक निष्पादनीय अनुबन्ध है क्योंकि दोनों पक्षकार उनके दायित्वों का निष्पादन भविष्य में करेंगे।

अनुबंध के प्रारूप के आधार पर

(1) औपचारिक अनुबंध : अनुबंध जिनके अंतर्गत प्रतिफल

जरूरी नहीं होता तथा वैधता सिर्फ उनके प्रारूप पर निर्भर होती है, को औपचारिक अनुबंध कहा जाता है। हालांकि ऐसे अनुबंधों को वैध होने के लिए कुछ शर्तों को संतुष्ट करना होता है। भारतीय कानून ऐसे अनुबंधों को मान्यता नहीं देता।

(2) सरल अनुबंध : औपचारिक अनुबंधों के अलावा सभी

अनुबंध, सरल अनुबंधों के रूप में जाने जाते हैं। वे सिर्फ तब वैध होते हैं, जब प्रतिफल द्वारा समर्थित किए जाते हैं।

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