एक ठहराव का अर्थ

हर व्यक्ति प्रतिदिन कई ठहराव करता है। आपसी ठहरावों के आधार पर, इतनी सारे व्यवहार हैं जो आपसी दायित्व की जागरुकता को  करते हैं। इन व्यवहारों का कानूनी दृष्टिकोण से भी विशेष महत्त्व होता है। ‘ठहराव’ के सम्बन्ध में विभिन्न विद्वानों द्वारा विभिन्न परिभाषाएं दी गई हैं:

चेट्टी के अनुसार ‘एक प्रस्ताव, सही तरह से स्वीकार किए जाने पर, एक ठहराव को संघटित करता है ।

पोलोक के अनुसार ‘एक ठहराव अन्य या अन्यों के प्रयोग के लिए एक या ज्यादा पक्षकारों द्वारा कुछ किए जाने या करने से निवारित किए जाने की व्यवस्था करता है । लीके के अनुसार ‘एक ठहराव दो लोगों में तय मामले से सम्बन्धित समान इरादा होने में उपस्थित होता है’।

भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 2(e) के अनुसार ‘हर वचन तथा वचनों का हर समूह जो एक दूसरे के लिए प्रतिफल को निर्मित करता है, एक ठहराव होता है।

‘ठहराव’ की उपरोक्त परिभाषाओं से यह स्पष्ट है कि एक ठहराव के लिए एक ‘वचन’ या वचनों के एक समूह होती है। शब्द वचन’ को भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 2 (7) में निम्न तरह परिभाषित किया गया है जब एक व्यक्ति दूसरे के सामने कोई प्रस्ताव रखता है तथा दूसरा इसे स्वीकार करता है, तब वह एक ‘वचन’ बन जाता है। अतः एक वचन की पूर्णता के लिए प्रस्ताव तथा इसकी स्वीकृति जरूरी है।

उदाहरण: कविता ने सविता को प्रस्ताव किया कि वह उसे 100 रु. के लिए साड़ी बेचना चाहती है। सविता ने इसे उसकी स्वीकृति दी। यह कहा जा सकता है कि कविता तथा सविता के बीच में एक ठहराव है। इस तरह से प्रस्ताव की स्वीकृति पर एक वचन अस्तित्व में आया है एवं इस वचन को एक ‘अनुबंध’ माना जाना चाहिए।

सरल शब्दों में यह कहा जा सकता है कि ‘प्रस्ताव’ तथा

‘स्वीकृति’ एक साथ ‘ठहराव’ को बनाते हैं।

एक ठहराव की अनिवार्यताएं एक ठहराव की प्रमुख अनिवार्यताएं निम्न हैं:

(1) दो या दो से ज्यादा पक्षकार : एक ठहराव के लिए मूल रूप से कम से कम दो या दो से ज्यादा पक्षकार होने चाहिए। एक अकेला व्यक्ति कभी स्वयं के साथ कोई ठहराव नहीं कर सकता।

(2) आपसी सहमति दोनों पक्षकारों को एक दूसरे के साथ एक तथा समान चीज पर सहमत होना चाहिए अन्यथा उनके बीच में कोई सहमति नहीं होगी।

(3) कानूनी संबंध एक ठहराव के लिए यह जरूरी है कि

पक्षकारों का उद्देश्य उनके बीच में कानूनी संबंधों को निर्मित तथा विकसित करना होना चाहिए।

(4) आपसी संचार : किसी प्रस्ताव के लिए सिर्फ मानसिक

स्वीकृति पर्याप्त नहीं होती। अतः यह जरूरी है कि पक्षकार उनके इरादों को एक दूसरे को संचारित करें।

(5) परिणाम एक ठहराव के परिणामस्वरूप सिर्फ संबंधित

पक्षकारों को आपस में प्रभावित होना चाहिए तथा और किसी पक्षकार को नहीं।

ठहराव कई तरह के हो सकते हैं जैसे सामाजिक, धार्मिक या कानूनी। एक सामाजिक ठहराव जैसे एक पिकनिक के लिए जाने का ठहराव विधि द्वारा प्रवर्तनीय नहीं होता है। सिर्फ कानूनी ठहरावों की विधिक दायित्व निर्मित करने की मंशा होती है एवं इसलिए उनको कानून द्वारा प्रवर्तनीय कराया जा सकता है।

‘ठहराव’ के अर्थ को समझने के बाद यह जानना भी जरूरी है। कि एक ‘संविदा’ क्या है तथा इसकी प्रकृति क्या है।

संविदा का अर्थ

सर विलियम एन्सन के अनुसार ‘एक संविदा कानून द्वारा

प्रवर्तनीय दो या ज्यादा व्यक्तियों के बीच किया गया ऐसा ठहराव है। जिसके द्वारा एक या ज्यादा पक्षकारों द्वारा दूसरे या दूसरों के लिए कार्य करने या बचने के अधिकार प्राप्त कर लिए जाते हैं।

भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 2(h) के अनुसार ‘कानून’ द्वारा प्रवर्तनीय एक ठहराव एक संविदा है।

सभी अनुबन्ध ठहराव होते है पर सभी ठहराव अनुबन्ध  नही होते है –

यदि ‘ठहराव’ तथा ‘अनुबंध’ का अलग से अध्ययन किया

जाता है, तब यह जाना जा सकता है कि ‘ठहराव’ का क्षेत्र ‘संविदा’ से ज्यादा विस्तारित है। इस परिभाषा में दो विशिष्ट बिन्दु हैं- एक ठहराव होना चाहिए, और ऐसा ठहराव राजनियम द्वारा प्रवर्तनीय होना चाहिए।

(I) सभी संविदाएं ठहराव होती हैं

(1) कानून के न्यायालयों द्वारा प्रवर्तनीय : यदि संविदा का

आदर नहीं किया जाता है, तब इसे कानून के न्यायालय द्वारा प्रवर्तनीय कराया जा सकता है। एक संविदा सिर्फ तब वैध होती है जब:

संविदा ठहराव कानून द्वारा प्रवर्तनीयता सभी अनुबंध ठहराव होते – 

1.जब पक्षकारों के बीच में एक प्रस्ताव तथा इसकी स्वीकृति के द्वारा एक ठहराव होता है।

2.ठहराव सिर्फ उन व्यक्तियों द्वारा किया जाना होता है जो एक

3.संविदा में प्रवेश करने के लिए सक्षम तथा योग्य होते हैं।

4.उनकी स्वीकृति स्वतंत्र रूप से प्राप्त की गई है।

गया है।

5.इसके लिए उचित या औचित्यपूर्ण प्रतिफल का भुगतान किया

6.ठहराव व्यर्थ घोषित नहीं किया गया है तथा

7.ठहराव लिखित तथा पंजीयत होना चाहिए।

यदि किसी संविदा में, उपरोक्त बिन्दुओं का ध्यान नहीं रखा गया है, तब यह वास्तव में एक संविदा नहीं होगी, यह सिर्फ एक ठहराव होगा। लेकिन यदि उपरोक्त बिन्दुओं का ध्यान रखा गया है, तब यह एक ‘संविदा’ होगा तथा साथ ही यह एक ठहराव भी बना रहेगा। अतः यह स्पष्ट है कि एक ठहराव के बिना, संविदा संभव नहीं हो सकती। संविदा. ठहराव से उत्पन्न होती है। लेकिन सिर्फ ये ठहराव संविदा होंगे जो कानूनी या कानूनपूर्ण प्रयोजनों के लिए हैं क्योंकि सिर्फ कानूनपूर्ण प्रयोजनों वाले ठहरावों का प्रवर्तन कानून द्वारा कराया जा सकता है।

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