प्रतिभूति के अनुबन्ध

प्रतिभूति के अनुबन्ध

‘प्रतिभूति का एक अनुबन्ध वचन का निष्पादन करने या एक तीसरे व्यक्ति के दायित्व का उसकी त्रुटि की स्थिति में पालन करने का अनुबन्ध होता है। व्यक्ति जो प्रतिभूति देता है उसे ‘प्रतिभू’ कहते हैं तथा व्यक्ति जिसकी त्रुटि के संदर्भ में प्रतिभूति दी जाती है उसे ‘मूल ऋणी’ कहते हैं तथा वह व्यक्ति जिसे प्रतिभूति दी जाती है, उसे ‘ऋणदाता’

कहते हैं। एक प्रतिभूति या तो मौखिक या लिखित हो सकती है।

उदाहरण- अ, ब को स को 1000 रु. का ऋण देने को यह वचन देते हुए कहता है कि यदि स रकम को वापस नहीं करेगा तो वह (अ) रकम का भुगतान करेगा।

उपरोक्त उदाहरण में अ प्रतिभू है, स ऋणदाता है तथा व मूल ऋणी है।

यह नोट करना महत्त्वपूर्ण है कि प्रतिभूति के एक अनुबन्ध में तीन भिन्न अनुबन्ध होते हैं एक मूल ऋणी तथा ऋणदाता के बीच में, दूसरा ऋणदाता तथा प्रतिभू के बीच में तथा तीसरा प्रतिभू तथा मूल ऋणी के बीच में।

प्रतिभूति के अनुबन्ध के प्रमुख लक्षण

प्रतिभूति का एक अनुबन्ध सामान्य अनुबन्ध का एक भाग है तथा इसलिए एक वैध अनुबन्धं के सभी अनिवार्य लक्षण उपस्थित होने चाहिए। हालांकि इसके कुछ विशेष लक्षण हैं जो इस तरह हैं-

( 1 ) प्रतिभू का दायित्व प्रमुख ऋणी की गलती पर निर्भर

होता है- प्रतिभू सिर्फ तब भुगतान करने के लिए जिम्मेदार है यदि प्रमुख ऋणी ने गलती की है। यदि वचन शर्तपूर्ण नहीं है, तब यह प्रतिभूति का अनुबन्ध नहीं होगा। उदाहरण के लिए यदि अ, ब को स को कुछ माल उधारों में बेचने का कहता का वचन देता है। यह प्रतिभूति का अनुबन्ध है क्योंकि वचन स की त्रुटि पर निर्भर है।

(2) प्रतिभूति के लिए अलग प्रतिफल जरूरी नहीं है- प्रतिभूति के एक अनुबन्ध के लिए प्रतिफल जरूरी है। लेकिन ऋणदाता द्वारा मूल ऋणी के लिए की गई कोई भी चीज प्रतिभू के लिए पर्याप्त प्रतिफल है।

प्रधान ऋणी तथा प्रतिभू के बीच में अलग प्रतिफल की कोई जरूरत नहीं होती है।

(3) प्रधान ऋणी को संविदा करने के योग्य होने की जरूरत नहीं होती- हालांकि ऋणदाता तथा प्रतिभू को अनुबन्ध करने के लिए योग्य होना चाहिए, लेकिन प्रधान ऋणी के अनुबन्ध करने के योग्य होने की जरूरत नहीं होती। ऐसी स्थिति में मूल ऋणी दायित्वाधीन नहीं होता

बल्कि प्रतिभू, मूल ॠणी के रूप में दायित्वाधीन होता है।

(4) एक वर्तमान ऋण या वचन होना चाहिए जिसके निष्पादन की प्रतिभूति दी गई है- प्रतिभूति के एक अनुबन्ध के लिए एक वर्तमान ऋण या वचन होना चाहिए जिसके निष्पादन की प्रतिभूति दी गई है। यदि ऐसा कोई ऋण या वचन नहीं है तब कोई वैध प्रतिभूति नहीं हो सकती।

प्रतिभूति के प्रकार

 प्रतिभूति के अनुबन्धों को मुख्यतः दो प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है-

(1) साधारण या विशिष्ट, तथा 

(2) चालू

(1) विशिष्ट या साधारण प्रतिभूति- जब एक प्रतिभूति एक अकेले ऋण या विशिष्ट व्यवहार के संदर्भ में दी जाती है तथा तब उसका अंत हो जाता है जब प्रतिभूति वाले ऋण का भुगतान कर दिया जाता है या जब वचन का duly निष्पादन कर दिया जाता है तब इसे एक विशिष्ट या

साधारण प्रतिभूति कहते हैं।

(2) चालू प्रतिभूति संविदा अधिनियम की धारा 129 इसे ऐसे परिभाषित करती है ‘एक प्रतिभूति जो व्यवहारों की एक श्रृंखला तक विस्तारित होता है, उसे एक चालू प्रतिभूति कहते हैं । अतः एक चालू प्रतिभूति एक अकेले व्यवहार तक सीमित नहीं रहती बल्कि लगातार

बहुत से व्यवहारों तक चलती रहती है। इस प्रकरण में प्रतिभू का दायित्व तब तक जारी रहेगा जब तक कि सारे व्यवहार पूरे नहीं हो जाते या जब तक उसके द्वारा और भावी व्यवहारों के लिए प्रतिभूति को रद्द नहीं कर

देता।

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