वस्तु विक्रय अधिनियम द्वारा मूल्य के निर्धारण को विशेषतः से किया जा सकता है-
दिया गया है। विक्रय के एक अनुबन्ध में मूल्य का निर्धारण निम्न तरीके
(1) मूल्य निश्चित होना चाहिए- धारा 9 ( 1 ) के अनुसार विक्रय के एक अनुबन्ध में मूल्य अनुबन्ध द्वारा निश्चित किया जा सकता है। जहाँ वह निश्चित नहीं किया गया है, उसे विक्रय के अनुबन्ध के पक्षकारों करने हेतु छोड़ा जा सकता है।
(2) मूल्य उचित होना चाहिए- धारा 9 (2) के अनुसार जहाँ मूल्य ऊपर निर्दिष्ट प्रावधान के अनुसार निर्धारित नहीं किया गया है, वहाँ विक्रेता को एक उचित मूल्य का भुगतान करेगा। उचित मूल्य क्या है यह का प्रश्न है।
विक्रय के हर विशिष्ट प्रकरण की परिस्थितियों पर आधारित एक तथ्य.
(3) मूल्य तीसरे पक्षकार द्वारा किए गए मूल्यांकन के आधार पर निश्चित किया जा सकता है- धारा 10 (1) के अनुसार मूल्य का निर्धारण एक तीसरे पक्षकार द्वारा किए गए मूल्याकन के आधार पर भी किया जा सकता है। लेकिन जहाँ माल विक्रय का एक ठहराव इन शर्तों
पर है कि मूल्य का निर्धारण एक तृतीय पक्षकार के मूल्यांकन के आधार पाता तो ठहराव से बचा जा सकता है।
(4) जहाँ माल क्रेता द्वारा विनियोजित किया गया है वहाँ
मूल्य उचित होना चाहिए- अधिनियम प्रावधान करता है कि यदि माल या उसका कोई हिस्सा क्रेता को सुपुर्द कर दिया गया था तथा पहले से ही उपयोग हो रहा था या क्रेता द्वारा विनियोजित किया गया था, तब वह उसका विक्रेता को उचित मूल्य का भुगतान करेगा।
(5) हर्जाने हेतु वाद- यह अधिनियम एक तृतीय पक्षकार के
मूल्यांकन के आधार पर मूल्य निर्धारण का प्रावधान करता है। जहाँ तीसरा पक्षकार विक्रेता या क्रेता की त्रुटि के कारण मूल्यांकन करने से वंचित कर दिया गया हो वहाँ जिस पक्षकार ने त्रुटि नहीं की है वह त्रुटि करने वाले
पक्षकार के विरुद्ध हर्जाने का वाद दायर कर सकता है।
मूल्य के भुगतान से सम्बन्धित नियम
मूल्य के भुगतान से सम्बन्धित कई नियमों का उल्लेख वस्तु
विक्रय अधिनियम की धारा 31 तथा 32 में किया गया है। नियम इस तरह हैं-
(1) सुपुर्दगी पर क्रय मूल्य का भुगतान जहाँ माल की
सुपुर्दगी विक्रेता द्वारा चाही गई मात्रा तथा गुणवत्ता में कर दी गई है, वहाँ क्रेता का निम्न कर्त्तव्य हो जाता है-
माल की सुपुर्दगी स्वीकार करना; तथा माल के
मूल्य का भुगतान करना
(2) एक साथ सुपुर्दगी तथा भुगतान जहाँ क्रेता तथा विक्रेता माल के मूल्य के भुगतान पर माल की सुपुर्दगी देने तथा लेने के लिए तैयार हैं वहाँ एक साथ माल की सुपुर्दगी तथा मूल्य का भुगतान किए जा सकते हैं भले ही इस संदर्भ में अनुबन्ध का अभाव है।
(3) मूल्य का किश्तों में भुगतान माल की किश्तों में सुपुर्दगी
की स्थिति में, मूल्य का भुगतान भी किश्तों में किया जा सकता है। हालांकि किसी किश्त का भुगतान न हो पाना अनुबन्ध भंग माना जाएगा तथा उसे रद्द माना जाएगा।