विक्रेता का अधिकार

वस्तु विक्रय अधिनियम की धारा 27 के अनुसार कोई भी क्रेता विक्रेता से बेहतर स्वत्व प्राप्त नहीं कर सकता। जिस भी तरह अधिकार विक्रेता के अधिकार में है-अच्छा या बुरा उसे वह क्रेता को हस्तान्तरित करेगा, उससे ज्यादा कुछ नहीं। भले ही क्रेता ने सद्भावना से कार्य किया है तथा माल का पूरा मूल्य भुगतान कर दिया है तब भी वह विक्रेता से बेहतर अधिकार प्राप्त नहीं कर सकता।

Nemo dat quod non habet (कोई भी वह नहीं दे सकता जो उसके अधिकार में नहीं है)- यह सूत्र लेटिन भाषा के इस सामान्य नियम पर आधारित है कि कोई भी व्यक्ति उस माल को नहीं दे सकता जो उसके अधिकार में नहीं है। यह नियम माल के असली मालिक के

अधिकार की रक्षा करता है। सम्पत्ति अधिनियम में भी कोई क्रेता सम्पत्ति पर विक्रेता से बेहतर या अच्छा अधिकार प्राप्त नहीं कर सकता है। यदि विक्रेता का अधिकार सीमित या दूषित है तो क्रेता को भी सीमित या दूषित अधिकार या स्वामित्व ही प्राप्त होगा।

इस नियम के अपवाद

निम्न परिस्थितियों में माल का क्रेता, क्रय किए गए माल पर

बेहतर अधिकार प्राप्त करता है-

(1) स्वामित्व के गर्मित अधिकार या अवरोध अधिकार के

अन्तर्गत विक्रय- जहाँ माल का स्वामी उसके व्यवहार या विलोपन के एक कार्य से क्रेता को यह विश्वास दिलाता है कि विक्रेता के पास माल बेचने का अधिकार है, तब वह बाद में इस तथ्य को मना करने अवरोधित किया जाएगा कि विक्रेता के पास विक्रय का कोई अधिकार नहीं था। ऐसा विक्रय वैध होता है तथा क्रेता ऐसे क्रय किए गए माल पर बेहतर अधिकार प्राप्त करेगा।

(2) एक व्यापारिक एजेन्ट द्वारा विक्रय- जहाँ स्वामी की सहमति से एक व्यापारिक एजेन्ट के पास माल या माल के अधिकार के किसी दस्तावेज का कब्जा है, तब उसके द्वारा व्यापार के सामान्य प्रगति में कार्य करते हुए, उसके द्वारा किया कोई विक्रय वैध विक्रय करने के लिए माल के स्वामी द्वारा स्पष्टतः इस स्थिति में क्रेता को सद्भावना से कार्य करना लेकिन होगा जैसे कि वह अधिकृत चाहिए तथा विक्रय के अनुबन्ध के समय उसके पास यह सूचना नहीं होनी चाहिए कि विक्रेता के पास विक्रय का कोई अधिकार नहीं है।

(3) संयुक्त मालिकों में से किसी एक के द्वारा धारा 28)- यदि माल के कई संयुक्त स्वामियों में से एक के पास संयुक्त स्वामियों की अनुमति से माल का एकाकी अधिकार है, तब माल में सम्पत्ति किसी भी ऐसे व्यक्ति को हस्तान्तरित हो जाती है जिसने इसे ऐसे संयुक्त- स्वामी से सद्भावना से खरीदा है तथा उसको विक्रय के अनुबन्ध

करते समय यह सूचना नहीं थी कि विक्रेता के पास विक्रय का कोई अधिकार नहीं है।

(4) व्यर्धनीय अनुबन्ध के अन्तर्गत कब्जा रखने वाले व्यक्ति द्वारा विक्रय- यदि माल के विक्रेता ने व्यर्थनीय अनुबन्ध के अन्तर्गत माल पर कब्जा प्राप्त किया है परन्तु अनुबन्ध को विक्रय के समय पर खण्डित नहीं किया गया है तब क्रेता को माल पर एक बेहतर अधिकार प्राप्त होता है बशर्ते कि वह उसे सद्भावनापूर्वक खरीदता है तथा उसे

विक्रेता के दूषित स्वामित्व की कोई सूचना नहीं थी।

(5) विक्रय के बाद माल को अपने कब्जे में रखने वाले

विक्रेता द्वारा विक्रय- जब विक्रय के बाद भी माल या माल सम्बन्धी अधिकार प्रलेख विक्रेता के कब्जे में रहते हैं तथा विक्रेता स्वयं या अपने व्यापारिक एजेन्ट द्वारा उस माल को किसी व्यक्ति को बेचता है जो उस माल को सद्भावनापूर्वक तथा पुराने विक्रय की सूचना के बिना खरीदता

है, तब विक्रय का वही प्रभाव होगा कि जैसे सुपुर्दगी या हस्तान्तरण कर रहा व्यक्ति ऐसा करने के लिए माल के स्वामी द्वारा स्पष्टतः अधिकृत था। ऐसी स्थिति में माल का क्रेता एक बेहतर अधिकार प्राप्त करेगा।

(6) माल का कब्जा रखने वाले एक क्रेता द्वारा विक्रय- जहाँ एक व्यक्ति जिसने माल खरीद लिया है या खरीदने के लिए तैयार है, वह विक्रेता की सहमति से माल या माल के अधिकार प्रलेखों का कब्जा प्राप्त करता है, तब ऐसे व्यक्ति या उसके व्यापारिक एजेन्ट द्वारा सुपुर्दगी का हस्तान्तरण वैध होगा बशर्ते कि माल प्राप्त करने वाला व्यक्ति उसे

सद्भावनापूर्वक तथा माल में उपस्थित मूल विक्रेता के किसी गृहणाधिकार  या अन्य अधिकार की सूचना के बिना खरीदता है।

(7) अन्य अपवाद वस्तु विक्रय अधिनियम, 1930 में दिए गए। अपवादों के अलावा अन्य स्थितियाँ भी हैं जिनमें क्रेता का अधिकार विक्रेता से बेहतर हो सकता है। निम्न परिस्थितियाँ उल्लेख लायक हैं- 

1.अदत्त विक्रेता द्वारा पुनर्विक्रय (धारा 54 )

2.खोये माल के प्राप्तक द्वारा विक्रय (धारा 169)

3.गिरवीग्रहीता द्वारा विक्रय (धारा 176)

4.न्यायालय के आदेशों के अन्तर्गत विक्रय

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