व्यावसायिक विधि का प्रमुख आधार ‘अनुबंध’ है। सभी व्यावसायिक गतिविधियाँ दो पक्षकारों के बीच में ठहरावों से उत्पन्न होती हैं। कानूनी ठहराव ‘अनुबंधों’ का रूप ले लेते हैं। यह सिर्फ अनुबंध की वैधता है जो इसमें कानूनीपन निर्मित करती है। अतः अनुबंध को बहुत अच्छे से
समझना बहुत जरूरी है। इस संबंध में, निम्न परिभाषाओं का उल्लेख किया जा सकता है:
लीके की राय में, एक वैध अनुबंध के स्रोत के रूप में, एक
ठहराव एक पक्षकार को कोई कार्य निष्पादित करने के लिए बाध्य करता है जबकि अन्यों में इसे प्रवर्तनीय कराने का कानूनी अधिकार होता है।
सरल विलियम एन्सन के अनुसार, ‘एक संविदा कानून द्वारा
प्रवर्तनीय दो या ज्यादा व्यक्तियों के बीच किया गया ऐसा ठहराव है।जिसके द्वारा एक या ज्यादा पक्षकारों द्वारा दूसरे या दूसरों के लिए कार्य करने या बचने के अधिकार प्राप्त कर लिए जाते हैं।
फ्रेडरिक पोलोक के अनुसार ‘कानून द्वारा प्रवर्तनीय हर ठहराव तथा वचन एक अनुबंध है।
सालमंड के अनुसार, ‘पक्षकारों के बीच में दायित्वों को निर्मित तथा परिभाषित कर रहा एक ठहराव, एक अनुबंध होता है।’
भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 की धारा 2(h) के अनुसार ‘कानून द्वारा प्रवर्तनीय एक ठहराव एक अनुबंध होता है।
एक वैध अनुबंध की अनिवार्यताएं
धारा 2 (h) तथा 10 के आधार पर, निम्न को, एक वैध अनुबंध होने के लिए एक अनुबंध के लिए अनिवार्यताएं माना जा सकता है। यदि किसी अनुबंध में निम्न अनिवार्यताओं में से किसी की भी कमी है, तब
यह एक वैध अनुबंध नहीं होगा।
(1) ठहराव (प्रस्ताव तथा स्वीकृति) : एक वैध ठहराव के लिए, एकदम पहली अनिवार्यता पक्षकारों के बीच में एक ठहराव होना चाहिए। ठहराव में एक प्रस्ताव तथा इसकी स्वीकृति शामिल होते हैं।
प्रस्ताव या ऑफर : धारा 2(a) के अनुसार जब एक व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति के कार्य के बारे में, इसे करने या नहीं करने के बारे में इस उद्देश्य से उसके इरादे को प्रकट करता है कि उस व्यक्ति की सहमति इसे उसके करने
या न करने के संबंध में प्राप्त की जा सके, तब यह कहा जा सकता है कि एक व्यक्ति ने दूसरे व्यक्ति के सामने एक ‘प्रस्ताव रखा है। प्रस्ताव रखने वाला व्यक्ति वचनकर्ता कहलाता है तथा वह व्यक्ति जिसके सामने यह रखा
जाता है, वह वचनग्रहिता के नाम से जाना जाता है।
स्वीकृति जब किसी व्यक्ति के सामने प्रस्ताव या ऑफर रखा जाता है, तथा जब वह इसके ऊपर उसकी सहमति व्यक्त करता है, तब यह कहा जा सकता है कि प्रस्ताव को स्वीकार किया गया है।
उदाहरण (i) अ ने ब को उसका मकान पाँच लाख रुपये के
लिए बेचने का प्रस्ताव किया जिसे ब ने स्वीकार कर लिया। यह वैध प्रस्ताव तथा स्वीकृति का एक उदाहरण है।
(ii) राम ने श्याम को ‘कुछ चीज’ 5000 रु. में बेचने का प्रस्ताव ‘कुछ चीज’ का अर्थ स्पष्ट नहीं है।
किया। यह एक वैध प्रस्ताव नहीं है क्योंकि यह अनिश्चित है क्योंकि
(2) अनुबंध करने की पक्षकारों की क्षमता : धारा 11 के
अनुसार ‘अनुबंध करने के सक्षम पक्षकारों से उन व्यक्तियों का अर्थ है। जिनमें अनुबंध करने की क्षमता है। अतः अनुबंध करने में सक्षम एक व्यक्ति में, नीचे दिए अनुसार तीन जरूरी विशेषताएं होनी चाहिए:
1.उसने परिचालन में कानून के अनुसार वयस्कता की आयु प्राप्त है।
2.वह स्वस्थ मस्तिष्क का एक व्यक्ति होना चाहिए।
(iii)साधारणत: विदेशी शत्रु, अन्य देशों के राजदूत या प्रतिनिधि तथा दिवालिया कोई अनुबंध नहीं कर सकते।
(3) पक्षकारों की स्वतंत्र सहमति एक वैध अनुबंध, अनुबंध
के पक्षकारों की सिर्फ स्वतंत्र सहमति से उत्पन्न हो सकता है। भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 13 के अनुसार, ‘दो या ज्यादा व्यक्ति सहमति में कहे जाते हैं जब वे समान भाव से सहमत होते हैं।
अधिनियम के अनुसार सहमति ‘स्वतंत्र’ कही जाती है यदि यह उत्पीड़न (धारा 15), अनुचित प्रभाव (धारा 16), कपट (धारा 17), मिथ्या व्यपदेशन (धारा 18) तथा गलती (धारा 21 ) द्वारा प्रेरित या प्राप्त नहीं की गई है।
उसे परिचालन में कानून द्वारा अनुबंध करने के अयोग्य घोषित नहीं कर दिया होना चाहिए।
उदाहरण- राम ने अशोक के सिर पर पिस्तौल अड़ाकर उसका मकान 10,000 रु. में बेचने के लिए कहा। राम डर के कारण सहमत हो गया। सहमति स्वतंत्र नहीं है क्योंकि यह उत्पीड़न द्वारा प्रभावित की गई है।
(4) कानूनी प्रतिफल : एक वैध अनुबंध, अनुबंध के पक्षकारों की सिर्फ स्वतंत्र सहमति से उत्पन्न हो सकता है। एक ठहराव सिर्फ तब कानून द्वारा प्रवर्तनीय होगा जब यह कानूनी प्रतिफल द्वारा समर्थित होता है। प्रतिफल का अर्थ दोनों पक्षकारों को ठहराव से उत्पन्न बदले में कुछ या लाभ है। धारा 23 के अनुसार अपवादस्वरूप प्रकरणों को छोड़कर, प्रतिफल पर्याप्त तथा कानून पूर्ण होना चाहिए। प्रतिफल कानून पूर्ण होता है यदि
1.यह कानून द्वारा वर्जित नहीं किया गया है या
2.यह ऐसी प्रकृति का नहीं है, कि यदि अनुमति दी गई तो
3.यह परिचालन में किसी कानून के प्रावधानों को परास्त कर देगा, या
4.कपटपूर्ण नहीं है, या
5.इसमें किसी व्यक्ति या ठहराव के पक्षकारों की संपत्ति
की कोई क्षति शामिल नहीं है।
या
6.यह लोकनीति के विरुद्ध नहीं है।
उदाहरण- अ ने 50,000 रु. में उसका मकान ब को बेचने हेतु स्वीकृति दी। यह कहा जा सकता है कि ब के लिए प्रतिफल मकान है तथा अ के लिए प्रतिफल 50,000 रु. है (जो वह बदले में पा रहे हैं)
(5) कानूनी उद्देश्य या प्रयोजन ठहराव का उद्देश्य गैरकानूनी, अनैतिक या लोकनीति के विरुद्ध नहीं होना चाहिए। एक गैरकानूनी उद्देश्य वाला एक ठहराव कभी भी एक अनुबंध नहीं बन सकता। अतः एक कानूनी उद्देश्य एक वैध अनुबंध का सार है।
उदाहरण- अ ने ब से एक मकान जुए के उपयोग के लिए किराए पर लिया। यह उद्देश्य अवैध माना जाएगा।
(6) ठहराव स्पष्ट रूप से व्यर्थ घोषित न हो: एक ठहराव सिर्फ तब कानून द्वारा प्रवर्तनीय होता है जब यह परिचालित किसी कानून द्वारा व्यर्थ घोषित किया हुआ नहीं होता। एक व्यर्थ ठहराव का कोई कानूनी अस्तित्व नहीं होता न यह पक्षकारों के लिए किसी अधिकार या दायित्व को उत्पन्न कर सकता है। भारतीय संविदा अधिनियम द्वारा निम्न ठहरावों को व्यर्थ घोषित किया गया है:
1.अनुबंध करने में असक्षम पक्षकारों द्वारा किए गए ठहराव (धारा 11)
2.गलती या कपट या दोनों के आधार पर किए गए ठहराव (धारा 20)
3.विवाह को वर्जित करने वाले ठहराव (धारा 26)